इस वर्ष दिल्ली में रहते हुए सबसे चर्चित जो शब्द सुनने में आया वो था शीला...। शीला की चर्चा दो कारणों से अधिक हुयी, पहला कारण तो 'शीला की जवानी' था लेकिन लोग दूसरा कारण खुल कर नहीं बताते हैं। एक दिन एक सज्जन ने दबे हुए स्वर में कहा की अब तो शीला भी बदनाम हो गयी। जब मैंने अपनी स्मृतियों पर जोर डाला तो जो तथ्य सामने आया उस हिसाब से तो मुन्नी को बदनाम होना था.. फिर शीला कैसे बदनाम हुयी ?
मेरा दिमाग घूम फिरकर मुन्नी और शीला पर इसलिए जा रहा था क्योंकि इन दो नामों की इन दिनों बड़ी जबरदस्त चर्चा थी। हर गली और हर गावं में इनकी जवानी और बदनामी के किस्से आम हो चुके थे। मुन्नी जबसे बदनाम हुयी तो झंडुबाम भी बेचने लगीं थीं। जबकि शीला को अपनी जवानी पर घमंड आ गया था। वह हर चैनल में अपनी जवानी की विशेषताओं को बताते फिर रही थीं। लेकिन इन सबके बीच तीसरी किसी बात पर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था।
थोड़ी देर बाद उस महोदय ने स्वतः बताया कि दिमाग पर अधिक जोर डालने कि आवश्यकता नहीं है..ये शीला सलमान खान वाली नहीं कांग्रेस वाली हैं जो दिल्ली की मालकिन हैं। फिर याद आया कि देश की राजधानी में यही इटलीपरस्त कांग्रेसी सत्ता की मालकिन शीला दीक्षित हैं जो भ्रष्टमंडल खेलों को राष्ट्र की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए खेल के नाम पर देश के गरीबों और किसानों के पैसों को पानी की तरह बहाने में तनिक भी संकोच नहीं की। राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर नेता अपनी जेबें भरते रहे और जनता लोक लुभावन होर्डिंग्स और विज्ञापनों को देखकर संतोष करती रही। जनता का क्या है यह तो एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना छाप अनशन का समर्थन करेगी और दूसरी तरफ देश की तरक्की का मूल-मंत्र गाँधी-नेहरू को बताने वाले कांग्रेस को वोट देकर राजसत्ता पर काबिज कराने के अभियान में लग जाएगी। भले ही वही नेता सत्ता में रहते हुए जनता की भावनाओं के साथ बलात्कार करने में जुटें हों!!
बात भ्रष्टाचार पर निकली है तो दूर तलक अवश्य जाएगी, भले ही राष्ट्र के स्वाभिमान को ताख पर रखकर देश की सर्वोपरी सत्ता संसथान की महारानी के तलवे चाटने वाली जाच एजेंसियों को थोड़ी बहुत नौटंकी करनी पड़े। इस दस दिन की अय्याशी के लिए जिस तरह देश कि जनता के साथ बलात्कार किया गया, दुनिया के इतिहास के इस सबसे बड़े घोटाले का सही ब्योरा तो शायद ही कभी आये। लेकिन सिर्फ लूट के मकसद से आयोजित इस खेल का खमियाजा जिस-जिस को उठाना पड़ रहा है, उसकी आह भी शायद किसी को न सुनाई दे।
अभी पिछले दिनों राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुई अनियमितता में राज्य सरकार के शामिल होने के आरोपों का सामना कर रहीं असंदिग्ध सांस्कृतिक सूझ-बूझ, सुरुचि और संस्कारों से लैस दिल्ली की माननीया मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्पष्ट कहा कि उनकी सरकार इस मामले में पाक-साफ होकर निकलेगी। आशय साफ़ है कहा जाता है कि 'जाको राखे साईयां मार सके न कोई' लेकिन इसी दोहे को दिल्ली की राजनीतिक भाषा में कहा जाता है 'जाको साथे सोनिया............'जिनके उपर इटली की महारानी और युवराज का हाथ हो उसका कोई क्या बिगाड़ पायेगा।
सीबीआई द्वारा राष्ट्रमंडल घोटाले में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े प्रतीक बने कलमाड़ी का कॉलर पकड़े जाने के बाद अब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर सवाल उठ रहे हैं। यह राष्ट्रमंडल खेल किस तरह भ्रष्ट कारनामों की एक गंगा लेकर आया, जिसमें समूची शीला सरकार ऊब-डूब रही है। करीब साढ़े सात सौ करोड़ रुपये का वह धन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के मद में घुसा दिया गया जो दलितों के विकास के लिए था। पिछले महज दो सालों से जिन लोगों की निगाह दिल्ली और दिल्ली के बाजार पर होगी, वे जानते होंगे कि शीला दीक्षित की सांस्कृतिक सूझ-बूझ, सुरुचि और संस्कार किसको-किसको निगल कर किसको समृद्ध बना रहे हैं।
किसी भी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी भी आयोजन का मेजबान बनना कई मायनों में महत्त्वपूर्ण और बहुत हद तक आर्थिक रूप से फायदेमंद भी साबित होता है। किंतु इसके साथ ही इस मुद्दे के कुछ अन्य बहुत से महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना भी जरूरी हो जाता है। जिस देश में अब भी सरकार बुनियादी समस्याओं से जूझ रही हो, अपराध, आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसी जाने कितनी ही मुसीबतें सामने मुंह बाए खड़ी हों, जिस देश को आज अपना धन और संसाधन खेल, मनोरंजन जैसे कार्यों से अधिक ज्यादा जरूरी कार्यों पर खर्च करने की जरूरत हो, वह विश्व में सिर्फ अपनी साख बढ़ाने के लिए ऐसे आयोजनों की जिम्मेदारी उठाने को तत्पर हो तो आप इसे किस नजरिये से देखेगे।
कलमाडी की नाटकीय गिरफ्तारी के माहौल के बीचगृह मंत्रालय द्वारा दिल्ली सरकार से शुंगलू कमिटी पर जवाब-तलब करना अनेक राजनीतिक सवालों को जन्म भी दे रहा है। लोग अब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से कमिटी की रिपोर्ट पर जवाब कुरेदने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सीएम पूरी तरह आश्वस्त हैं। मुख्यमंत्री की आश्वस्तता ने साफ़ कर दिया है कि शीला को बदनाम करने के लिए विपक्षियों को अभी और पापड़ बेलने पड़ेंगे।
शीर्षक पढ़ते ही चेहरे पर मुस्कान आ गई। यह राष्ट्रमंडल खेल किस तरह भ्रष्ट कारनामों की एक गंगा लेकर आया, जिसमें समूची शीला सरकार ऊब-डूब रही है। करीब साढ़े सात सौ करोड़ रुपये का वह धन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के मद में घुसा दिया गया जो दलितों के विकास के लिए था।
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avenesh g सही कहा ... ग़रीबों की हाए कांग्रेस को ले डुबेगी| लेकिन कांग्रेस तो अब इतनी डूब चुकी है की अब उसे किसी की भी हाए नही डुबो सकती| कांग्रेस को भ्रष्टाचार के सागर मे तैरना आ चुका है| इस सागर मे वो इतनी दूर निकल चुके हैं की उनको जनता की हाए सुनाई भी नही देगी |
ReplyDeleteसब शीला की लीला है... भले ही गरीबों का गीला हो जाए। जिन टैक्स चोरों का नाम सरकार बताने से डरती थी उसका खुलासा अब विकिलीक्स करेगी।जिस दिन भारत का भाग्य रचने वाले शुक्राचार्यों की पूरी लिस्ट सामने आएगी विश्वास की चूलें चरमरा जाएगी।काले धन के पहाड़ पहर बैठे देवताओं के शीश महल पाप की नगरी लगने लगेगी।जब दौलत के दरवाजे खुलेंगे तो सरकार की थकी हुई शब्दावली जनता के खौलते जज्बातों के आगे दीवार बनने से इनकार कर देगी।
ReplyDeleteकांग्रेस को हल्के में मत लिजिए।इसके पास जनता के भावनाओं से खेलने वाली कई शीला है...जिनका ढीला करने करने के लिए जनता का नहीं... सोनिया का हाथ चाहिए।सोनिया पैदल चलती है तो खबर बन जाती है।क्या पता आम आदमी के रास्ते पर भी कब्जा जमाना चाहती हों।या हो सकता है गाड़ी में तेल नही हो।या ये भी हो सकता है..."गाड़ी का ड्राइवर प्रियंका को लेकर कहीं गया हो"।
jabardast lekhni hai bandhu..aap ne sahi kaha ki jb soniya g ka haath sheela g k sath hai to unko darne ki kya jrurat hai..lekin mai aek baat kahna chahuga ki ye bhrast sattadhari jyada dino tak satta pe kabij nhi rhenge kyoki suruvaat ho chuki hai ...
ReplyDeleteDelhi ki rani sheela ko fly over aur briedge banane ke nam per liya gya dhan apne MP son sandeep ki company ko gift ke roop me tender dekar sheela khud ko delhi ki maharani ban baithi h lekin delhi ki janata ki prablem ko samnjane ke liye unhe jhuggi jhopadiyo me jana padega .
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