Saturday 26 March 2011

नक्सलियों के दलाल स्वामी अग्निवेश पर फेंके गए अंडे और टमाटर


रायपुर। दंतेवाड़ा के दोरनापाल अग्निकांड की पड़ताल करने गये नक्सलियों के दलाल अग्निवेश को सलवा जुडूम समर्थकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं विरोध कर रहे इन लोगों ने अग्निवेश के विरोध में नारे लगाते हुए उन पर अंडे और टमाटर फेंके। इस घटना के बाद अग्निवेश ने सरकार से सुरक्षा की मांग की है।



अग्निवेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भारी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुईं। नतीजतन अग्निवेश को सुकमा वापस लौटना पड़ा। दंतेवाड़ा में सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं ने चक्का जाम कर दिया और स्वामी अग्निवेश को दंतेवाड़ा जिले से बाहर निकल जाने की मांग की। विरोध प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं ने अग्निवेश के दल से कंबल और कपड़े छीन लिये। वे नारे लगा रहे थे कि स्वामी 2006 में कहां थे आप, आपकी हमदर्दी नहीं चाहिए।

दरअसल, स्वामी अग्निवेश ही नहीं, देश की राजधानी में बैठकर सामाजिक सक्रियता दिखाने वाले बहुत से सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ दिक्कत यही है कि उन्होंने सामाजिक आन्दोलनों को अपने लिए यशप्राप्ति की सीढ़ी बना लिया है। अपने आन्दोलनों के लिए उन्हें दूरदराज तक के इलाकों में साथियों की जरूरत पड़ती है, लेकिन जब काम निकल जाता है तो इन साथियों को आसानी से भुला दिया जाता है। हमारे ऐसे सामाजिक कायकर्ता अपने व्यवहार में उन राजनेताओं से भिन्न नहीं हैं जो चुनाव जीतने के बाद मतदाताओं को भुला देते हैं।

वहीं सलवा जुडूम के समर्थकों का कहना है कि साल 2006 में जब नक्सलियों ने अग्निकांड किया था तब उसकी जांच के लिए स्वामी अग्निवेश क्यों नहीं आए। स्वामी अग्निवेश का कहना है कि अगर सुरक्षा बालों द्वारा ग्रामीणों के घरों को जलने की घटना यह सच साबित हुई तो सरकार को न्यायिक जांच के लिए तैयार रहना चाहिए।
हमले के अगले दिन रविवार को सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने कहा कि सलवा जुडूम नियंत्रण से बाहर हो गया है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2005 में नागरिक सेना आंदोलन 'सलवा जुडूम' की शुरुआत नक्सलियों के विद्रोह का मुकाबला करने के लिए की गई थी। शनिवार को हुई घटना से मुख्यमंत्री रमन सिंह को अवगत कराने के बाद संवाददाता सम्मेलन में अग्निवेश ने टिप्पणी की, 'सलवा जुडूम का नेतृत्व गलत हाथों में है। वह नियंत्रण से बाहर हो गया है।
गौरतलब है कि इस घटना के बाद जिले के दो शीर्ष अधिकारियों का तबादला कर दिया गया है। घटना की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश से न्यायिक जांच कराने की मांग करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि रमन सिंह को दंतेवाड़ा में हुई सभी घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने खुद पर हुए हमले के अलावा तीन गांवों में पुलिस अत्याचार के ग्रामीणों के आरोप की जांच कराने की मांग की।

अवनीश। 26 मार्च, 2011

Friday 25 March 2011

भारतीय राजनीति में "मन"हूसों का योगदान




इसे कहते हैं बहुमत में जल्दी बड़ा "जुर्माना"। भारतीय राजनीति पर एहसान कहिए विकीलीक्स का जिसने जुर्माना को हर्जाना बना दिया। जिसे चुकाने में अब पीएम साहब खुद चुक रहे हैं। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ.....पीएम कह रहे है पता नहीं। कॉमनवेल्थ घोटाला हुआ....पीएम कह रहे है पता नहीं। थॉमसकी अवैध नियुक्ति पर पीएम कह रहे है पता नहीं। 14 वीं लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने के दौरान सांसदों का खरीद फरोख्त हुआ....पीएम कह रहे है पता नहीं। जब कुछ पता नहीं है साहब तो पीएम बने रहने की मजबूरी क्या है।

22 जुलाई 2008 को हुई सियासी हादसे का चश्मदीद आप से बड़ा कौन होगा। सरकार को कंधा देने की नौबत आ गयी थी। लेकिन....इंतजाम इतना पक्का था कि.....आप के श्रीमुख से निकली शायरी पर आपके सहयोगी दलों के नासमझों ने भी खूब ताली पिटी थी। अब तो विकिलीक्स के खुलासे से सियासी गलियारों में खलबली मच गयी। अजित कह रहे हैं हमारे सांसदों ने वोट नहीं दिया। मुलायम सिंह तो वोट देकर फंस गए। और लेफ्ट तो अमेरिका की मां की आंख में ही यकीन रखता है।

अब तो प्रधानमंत्री के बारे में यह अवधारणा बन चुकी है कि इस सरकार को कोई अदृश्य शक्ति चला रही है। वह संवैधानिक दृष्टि से संसद के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन वस्तुतः वह सोनिया गांधी के प्रति उत्तरदायी हैं। वह मंत्रिपरिषद के प्रधान हैं, लेकिन मंत्रिगण उनकी बात नहीं सुनते। वह स्वयं ईमानदार हैं, लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार पर कोई कारवाई नहीं कर सकते। वह अंतरराष्टीय ख्याति के अर्थशास्त्री हैं, लेकिन महंगाई जैसी आर्थिक समस्या के सामने ही उन्होंने हथियार डाले हैं।

पीएम साहब ...शर्म करो उस शक्तिबोध को जो इस फरेब को राजनीतिक आस्था में तब्दील करने के लिए जालिम बना रही है। इस अंधेरगर्दी पर विकीलीक्स का चाबुक ऐसा हिसाब लेगा किसी ने नहीं सोचा था। 23 मार्च 2011 को लोकसभा में सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर बरस पड़ी। कहा जब कुछ पता नहीं है तो पीएम क्यों बने हैं। सुषमा के पांच सवालों के चक्रव्यूह में यूपीए सरकार छटपटा रही थी। लेकिन जब-जब सरकार ने मुंह खोला तो यही निकला...यकी  न करिए विश्वास मत के दौरान "मन" ठीक था।

देश की जनता को अपने प्रधानमंत्री की इस ईमानदारी और वास्तविक स्वीकारोक्ति की तारीफ करनी चाहिए। प्रधानमंत्री की बातों से यह तो स्पष्ट हो गया है हमारे देश के विद्वान प्रधानमंत्री कई अंतर्विरोधों के शिकार हैं। वह सरल ह्दय गैरराजनीतिक व्यक्ति हैं, लेकिन देश के राजप्रमुख हैं।

सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि आजादी के इतने बरसों के बाद भी देश में लंबे समय तक शासन का अनुभव रखने वाली कांग्रेस सरकार को अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जाए? भ्रष्टाचार ने सरकार की छवि को बट्टा लगाया है। भ्रष्टाचार के चलते अंतरराष्टीय स्तर पर देश की छवि भी धूमिल हुई है। यह तो स्पष्ट हो चुका है कि संप्रग सरकार घोटालों की प्रतीक बन गई है। आए दिन घोटाले की खबरें आ रही हैं। आजादी के बाद इतना कमजोर प्रधानमंत्री शायद किसी ने देखा हो, जिसका अपनी सरकार के काम-काज पर ही नियंत्रण नहीं है।

आप इस संदिग्ध सच्चाई को स्वीकरिए या धिक्कारिए...लेकिन नकार नहीं सकते। ईमानदारी का ताजमहल के बजाय झूठ का पिरामिट खड़ी करने में जितनी दिलचस्पी पीएम साहब ले रहे है उससे भारतीय राजनीति के बुझे तकदीर के आकाशगंगा के सितारे जगमगाएंगे जरूर...लेकिन सिर्फ उजाले में।
vijay & avenesh 25 march

Wednesday 23 March 2011

अमर शहीद सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव


भारत के शहीद-ए-आज़म अमर शहीद सरदार भगतसिंह का नाम विश्व में 20वीं शताब्दी के अमर शहीदों में बहुत ऊँचा है। (जन्म- 27 सितंबर, 1907 ई., लायलपुर,पंजाब, मृत्यु- 23 मार्च, 1931 ई., लाहौर, पंजाब)। भगतसिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। भगतसिंह अपने देश के लिये ही जीये और उसी के लिए शहीद भी हो गये।

जीवन परिचय
भगतसिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के ज़िला लायलपुर में बंगा गाँव (पाकिस्तान) में हुआ था, एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था, जिसका अनुकूल प्रभाव उन पर पड़ा था। भगतसिंह के पिता 'सरदार किशन सिंह' एवं उनके दो चाचा 'अजीतसिंह' तथा 'स्वर्णसिंह' अंग्रेज़ों के ख़िलाफ होने के कारण जेल में बन्द थे । जिस दिन भगतसिंह पैदा हुए उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया । इस शुभ घड़ी के अवसर पर भगत सिंह के घर में खुशी और भी बढ़ गयी थी । भगतसिंह की दादी ने बच्चे का नाम 'भागां वाला' (अच्छे भाग्य वाला) रखा। बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा । वे 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रान्तिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बन्धन में बाँधने की तैयारियाँ होने लगी तो वेलाहौर से भागकर कानपुर आ गये।

कानपुर में उन्हें श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का हार्दिक सहयोग भी प्राप्त हुआ। देश की स्वतंत्रता के लिए अखिल भारतीय स्तर पर क्रान्तिकारी दल का पुनर्गठन करने का श्रेय सरदार भगतसिंह को ही जाता है। उन्होंने कानपुर के 'प्रताप' में 'बलवंत सिंह' के नाम से तथा दिल्ली में 'अर्जुन' के सम्पादकीय विभाग में 'अर्जुन सिंह' के नाम से कुछ समय काम किया और अपने को 'नौजवान भारत सभा' से भी सम्बद्ध रखा।

क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में
1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में प्रदर्शन हो रहे थे और इसी वर्ष 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग़ काण्ड हुआ । इस काण्ड का समाचार सुनकर भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे। देश पर मर-मिटने वाले शहीदों के प्रति श्रध्दांजलि दी तथा रक्त से भीगी मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया, जिससे सदैव यह याद रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है ।

असहयोग आंदोलन का प्रभाव
 1920 के महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर 1921 में भगतसिंह ने स्कूल छोड़ दिया। असहयोग आंदोलन से प्रभावित छात्रों के लिए लाला लाजपत राय ने लाहौर में 'नेशनल कॉलेज' की स्थापना की थी। इसी कॉलेज में भगतसिंह ने भी प्रवेश लिया। 'पंजाब नेशनल कॉलेज' में उनकी देशभक्ति की भावना फलने-फूलने लगी। इसी कॉलेज में ही यशपाल, भगवतीचरण, सुखदेव, तीर्थराम, झण्डासिंह आदि क्रांतिकारियों से संपर्क हुआ। कॉलेज में एक नेशनल नाटक क्लब भी था। इसी क्लब के माध्यम से भगतसिंह ने देशभक्तिपूर्ण नाटकों में अभिनय भी किया। ये नाटक थे -राणा प्रतापभारत-दुर्दशा और सम्राट चन्द्रगुप्त।
वे 'चन्द्रशेखर आज़ाद' जैस महान क्रान्तिकारी के सम्पर्क में आये और बाद में उनके प्रगाढ़ मित्र बन गये। 1928 में 'सांडर्स हत्याकाण्ड' के वे प्रमुख नायक थे। 8 अप्रैल, 1929 को ऐतिहासिक 'असेम्बली बमकाण्ड' के भी वे प्रमुख अभियुक्त माने गये थे। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल भी की थी। वास्तव में इतिहास का एक अध्याय ही भगतसिंह के साहस, शौर्य, दृढ़ सकंल्प और बलिदान की कहानियों से भरा पड़ा है।

सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल का विरोध
विचार-विमर्श के पश्चात यह निर्णय हुआ कि इस सारे कार्य को भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु अंजाम देंगे। पंजाब के बेटों ने लाजपत राय के ख़ून का बदला ख़ून से ले लिया। सांडर्स और उसके कुछ साथी गोलियों से भून दिए गए। उन्हीं दिनों अंग्रेज़ सरकार दिल्ली की असेंबली में पब्लिक 'सेफ्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' लाने की तैयारी में थी। ये बहुत ही दमनकारी क़ानून थे और सरकार इन्हें पास करने का फैसला कर चुकी थी। शासकों का इस बिल को क़ानून बनाने के पीछे उद्देश्य था कि जनता में क्रांति का जो बीज पनप रहा है उसे अंकुरित होने से पहले ही समाप्त कर दिया जाए।

असेम्बली बमकाण्ड
गंभीर विचार-विमर्श के पश्चात 8 अप्रैल 1929 का दिन असेंबली में बम फेंकने के लिए तय हुआ और इस कार्य के लिए भगत सिंह एवंबटुकेश्र्वर दत्त निश्चित हुए। यद्यपि असेंबली के बहुत से सदस्य इस दमनकारी क़ानून के विरुद्ध थे तथापि वायसराय इसे अपने विशेषाधिकार से पास करना चाहता था। इसलिए यही तय हुआ कि जब वायसराय पब्लिक सेफ्टी बिल को क़ानून बनाने के लिए प्रस्तुत करे, ठीक उसी समय धमाका किया जाए और ऐसा ही किया भी गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका। इसके पश्चात क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह और बटुकेश्र्वर दत्त को आजीवन कारावास मिला।
भगत सिंह और उनके साथियों पर 'लाहौर षडयंत्र' का मुकदमा भी जेल में रहते ही चला। भागे हुए क्रांतिकारियों में प्रमुख राजगुरु पूना से गिरफ़्तार करके लाए गए। अंत में अदालत ने वही फैसला दिया, जिसकी पहले से ही उम्मीद थी। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को मृत्युदंड की सज़ा मिली।

फाँसी की सज़ा
23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु देशभक्ति को अपराध कहकर फांसी पर लटका दिए गए। यह भी माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, लेकिन जन रोष से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही इन वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी और रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया। 'लाहौर षड़यंत्र' के मुक़दमें में भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा मिली तथा केवल 24 वर्ष की आयु में ही, 23 मार्च 1931 की रात में उन्होंने हँसते-हँसते संसार से विदा ले ली।

भगतसिंह के उदय से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली वरन् नवयुवकों के लिए भी प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ। वे देश के समस्त शहीदों के सिरमौर थे। 24 मार्च को यह समाचार जब देशवासियों को मिला तो लोग वहां पहुंचे, जहां इन शहीदों की पवित्र राख और कुछ अस्थियां पड़ी थीं। देश के दीवाने उस राख को ही सिर पर लगाए उन अस्थियों को संभाले अंग्रेज़ी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेने लगे। देश और विदेश के प्रमुख नेताओं और पत्रों ने अंग्रेज़ी सरकार के इस काले कारनामे की तीव्र निंदा की।


वर्ष घटनाक्रम

1919 --- वर्ष 1919 से लगाये गये 'शासन सुधार अधिनियमों' की जांच के लिए फ़रवरी 1928 में 'साइमन कमीशन' मुम्बई पहुंचा। पूरेभारत देश में इसका व्यापक विरोध हुआ।

1926  --- भगतसिंह ने लाहौर में 'नौजवान भारत सभा' का गठन किया । यह सभा धर्मनिरपेक्ष संस्था थी।

1927 --- दशहरे वाले दिन छल से भगतसिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया। झूठा मुकदमा चला किन्तु वे भगतसिंह पर आरोप सिद्ध नहीं कर पाए, मजबूरन भगतसिंह को छोड़ना पड़ा ।

1927 --- 'काकोरी केस' में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशनसिंह को फांसी दे दी गई।

सितंबर, 1928 --- क्रांतिकारियों की बैठक दिल्ली के फिरोजशाह के खण्डरों में हुई, जिसमें भगतसिंह के परामर्श पर 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' का नाम बदलकर 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन' कर दिया गया।

30 अक्टूबर, 1928 --- कमीशन लाहौर पहुंचा। लाला लाजपत राय के नेतृत्व में कमीशन के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ। जिसमें लाला लाजपतराय पर लाठी बरसायी गयीं। वे ख़ून से लहूलुहान हो गए। भगतसिंह ने यह सब अपनी आंखों से देखा।

17 नवम्बर, 1928 --- लाला जी का देहान्त हो गया। भगतसिंह बदला लेने के लिए तत्पर हो गए। लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' ने भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, आज़ाद और जयगोपाल को यह कार्य दिया। क्रांतिकारियों ने साण्डर्स को मारकर लालाजी की मौत का बदला लिया।

8 अप्रैल, 1929 --- भगतसिंह ने निश्चित समय पर असेम्बली में बम फेंका। दोनों ने नारा लगाया 'इन्कलाब जिन्दाबाद'… अनेक पर्चे भी फेंके, जिनमें जनता का रोष प्रकट किया गया था। बम फेंककर इन्होंने स्वयं को गिरफ़्तार कराया। अपनी आवाज़ जनता तक पहुंचाने के लिए अपने मुक़दमे की पैरवी उन्होंने खुद की।

7 मई, 1929 --- भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के विरूद्ध अदालत का नाटक शुरू हुआ।

6 जून,1929 --- भगतसिंह ने अपने पक्ष में वक्तव्य दिया, जिसमें भगतसिंह ने स्वतंत्रता, साम्राज्यवाद, क्रांति पर विचार रखे और क्रांतिकारियों के विचार सारी दुनिया के सामने आये।

12 जून, 1929 --- सेशन जज ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत आजीवन कारावास की सज़ा दी। इन्होंने सेशन जज के निर्णय के विरुध्द लाहौर हाइकोर्ट में अपील की। यहाँ भगतसिंह ने पुन: अपना भाषण दिया ।

13 जनवरी, 1930 --- हाईकोर्ट ने सेशन जज के निर्णय को मान्य ठहराया। इनके मुकदमे को ट्रिब्यूनल के हवाले कर दिया ।

5 मई, 1930 --- पुंछ हाउस, लाहौर में मुक़दमे की सुनवाई शुरू की गई। आज़ाद ने भगतसिंह को जेल से छुड़ाने की योजना भी बनाई।

28 मई, 1930 --- भगवतीचरण बोहरा बम का परीक्षण करते समय घायल हो गए। उनकी मृत्यु हो जाने से यह योजना सफल नहीं हो सकी। अदालत की कार्रवाई लगभग तीन महीने तक चलती रही ।

मई1930 --- 'नौजवान भारत सभा' को गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया।

26 अगस्त, 1930 --- अदालत ने भगतसिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 तथा 6 एफ तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिध्द किया।

7 अक्तूबर, 1930 --- 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सज़ा दी गई। लाहौर में धारा 144 लगा दी गई ।

नवम्बर 1930 --- प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। प्रिवी परिषद में अपील रद्द किए जाने पर भारत में ही नहीं, विदेशों में भी लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई ।

24 मार्च, 1931 --- फाँसी का समय प्रात:काल 24 मार्च, 1931 निर्धारित हुआ था।

23 मार्च, 1931 --- सरकार ने 23 मार्च को सायंकाल 7.33 बजे, उन्हें एक दिन पहले ही प्रात:काल की जगह संध्या समय तीनों देशभक्त क्रांतिकारियों को एक साथ फाँसी दी। भगतसिंह तथा उनके साथियों की शहादत की खबर से सारा देश शोक के सागर में डूब चुका था। मुम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता जैसे महानगरों का माहौल चिन्तनीय हो उठा। भारत के ही नहीं विदेशी अखबारों ने भी अंग्रेज़ सरकार के इस कृत्य की बहुत आलोचनाएं कीं।


अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है
भगतसिंह एक प्रतीक बन गया । साण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गांव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूंज उठा । उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई । वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी
वह शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की यह पंक्तियां गाते थे


मेरा रंग दे बसंती चोला ।
इसी रंग में रंग के शिवा ने मां का बंधन खोला ॥
मेरा रंग दे बसंती चोला
यही रंग हल्दीघाटी में खुलकर था खेला ।
नव बसंत में भारत के हित वीरों का यह मेला
मेरा रंग दे बसन्ती चोला।

अंग्रेज़ों से बचने के लिए भगतसिंह ने भेष बदला। उन्होंने अपने केश और दाढ़ी कटवाकर, पैंट पहनी और हैट लगाकर अंग्रेज़ों की आंखों में धूल झोंक कर कलकत्ता पहुंचे। कुछ दिन बाद वे आगरा गए।
'हिन्दुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ' की केन्द्रीय कार्यकारिणी की सभा में 'पब्लिक सेफ्टी बिल' और 'डिस्प्यूट्स बिल' के विरोध में भगतसिंह ने 'केन्द्रीय असेम्बली' में बम फेंकने का प्रस्ताव रखा। भगतसिंह के सहायक बटुकेश्वर दत्त बने।
पिस्तौल और पुस्तक भगतसिंह के दो परम विश्वसनीय मित्र थे।
जेल में पुस्तकें पढक़र ही वे अपने समय का सदुपयोग करते थे, जेल की कालकोठरी में उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी-आत्मकथा, दि डोर टू डेथ (मौत के दरवाजे पर)आइडियल ऑफ सोशलिज्म (समाजवाद का आदर्श), स्वाधीनता की लड़ाई में पंजाब का पहला उभार।
भगतसिंह की शौहरत से प्रभावित होकर डॉ. पट्टाभिसीतारमैया ने लिखा है
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भगतसिंह का नाम भारत में उतना ही लोकप्रिय था, जितना कि गांधीजी का।
लाहौर के उर्दू दैनिक समाचारपत्र 'पयाम' ने लिखा था
हिन्दुस्तान इन तीनों शहीदों को पूरे ब्रितानिया से ऊंचा समझता है। अगर हम हज़ारों-लाखों अंग्रेज़ों को मार भी गिराएं, तो भी हम पूरा बदला नहीं चुका सकते। यह बदला तभी पूरा होगा, अगर तुम हिन्दुस्तान को आज़ाद करा लो, तभी ब्रितानिया की शान मिट्टी में मिलेगी। ओ ! भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव, अंग्रेज़ खुश हैं कि उन्होंने तुम्हारा खून कर दिया। लेकिन वो ग़लती पर हैं। उन्होंने तुम्हारा खून नहीं किया, उन्होंने अपने ही भविष्य में छुरा घोंपा है। तुम जिन्दा हो और हमेशा जिन्दा रहोगे।
"दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उलफत;
मेरी मिटटी से भी खुशबु-ए-वतन आयेगी ।
             

                इन्कलाब जिंदाबाद

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शहीद सुखदेव
15 मई, 1907 को पंजाब के लायलपुर, जो अब पाकिस्तान का फैसलाबाद है, में जन्मे सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।
दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में 'सेंट्रल असेंबली' में बम फेंकने के लिए जब 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' (एचएसआरए) की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगतसिंह ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आज़ाद ने उन्हें इज़ाज़त नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत ज़रूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर जिंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगत सिंह ने आज़ाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे।
अगले दिन जब सुखदेव बैठक में आए तो उनकी आंखें सूजी हुई थीं। वह भगत को ताना मारने की वजह से सारी रात सो नहीं पाए थे। उन्हें अहसास हो गया था कि गिरफ्तारी के बाद भगतसिंह की फांसी निश्चित है। इस पर भगतसिंह ने सुखदेव को सांत्वना दी और कहा कि देश को कुर्बानी की ज़रूरत है। सुखदेव ने अपने द्वारा कही गई बातों के लिए माफी मांगी और भगतसिंह इस पर मुस्करा दिए। hबगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहा करते थे।
भारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को हम सब की ओर से शत शत नमन !!


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शहीद राजगुरु
शहीद राजगुरु का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त,1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव में हुआ था, जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है। उनके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी

आज़ादी का प्रण
राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। 1919 मेंजलियांवाला बाग़ में जनरल डायर के नेतृत्व में किये गये भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ बाग़ी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समय भारत को विदेशियों के हाथों आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया कि चाहे इस कार्य में उनकी जान ही क्यों न चली जाये वह पीछे नहीं हटेंगे।

सुनियोजित गिरफ़्तारी
जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था। राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी 'जे. पी. सांडर्स' को गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेज़ी सिपाहियों से गिरफ़्तार कराया था। यह सब पूर्व नियोजित था।

अदालत में बयान
अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे पंजाब में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी

प्रसिद्ध तिकड़ी
(भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु )
राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मारी थी
राजगुरु ने 28 सितंबर, 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ़्तार कर लिया गया था।
राजगुरु पर 'लाहौर षड़यंत्र' मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया।

फ़ाँसी का दिन
राजगुरु को भी 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया.

विशेष
इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था

वन्दे मातरम

Sunday 20 March 2011

'मिस यूनिवर्स कॉन्टेस्ट इस्लाम विरोधी, भाग लोगी..मार देंगे'

 लंदन। 20 MARCH ।
ब्रिटेन की तरफ से मिस यूनिवर्स कॉन्टेस्ट में भाग लेने के लिए जी जान से जुटी एक 24 वर्षीय मुस्लिम युवती को कट्टरपंथियों ने जान से मारने की धमकी दी है। मुस्लिम कट्टरपंथियों का कहना है कि वह ऐसा करके इस्लाम का अपमान कर रही हैं। 

शना बुखारी ब्रिटेन में मिस यूनिवर्स कंटेस्टेंट के चुनाव के क्वालिफाइंग राउंड में पहुंच चुकी हैं। जब से उनके इस कॉन्टेस्ट में भाग लेने की खबर आई है, तभी से उन्हें धमकियां मिल रही हैं। बुखारी ने बताया कि उसे फेसबुक पर 300 नफरत भरे संदेश मिल चुके हैं। पिछले हफ्ते ही उसे जान से मारने की धमकी मिली है।

बुखारी इन सबसे बहुत घबराई हुई हैं। उन्होंने अपनी जान को खतरा जताया है। इसके अलावा उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए एक प्राइवेट सिक्युरिटी फर्म से भी संपर्क किया है। 

Monday 14 March 2011

विधानसभा चुनाव : कांग्रेस व वामदलों की साख दांव पर


देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनावों की घोषणा हो चुकी है। ये चुनाव अप्रैल-मई में होने हैं। इस साल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वो हैं असम, केरल, तमिलनाडु, पुदुचेरी और पश्चिम बंगाल।

इन पांच राज्यों में से असम और पुडुचेरी में कांग्रेस पार्टी की सत्ता है, तो तमिलनाडु में डीएमके का शासन है। पश्चिम बंगाल और केरल में वाम दलों की सत्ता है। इन चुनावों में कांग्रेस और वामदलों की साख दांव पर लगी है। उधर तमिलनाडु में टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में डीएमके के फंसने से करुणानिधि का छठी बार सत्ता में लौटना मुश्किल लगता है।

राजनीतिक गलियारों में हो उठा-पटक से इन चुनावों में पश्चिम बंगाल और केरल में वामपंथी दुर्ग ढहने के कगार पर है। तमिलनाडु में डीएमके और असम में कांग्रेस के सामने सरकार बचाने की चुनौती है। एक तरफ कांग्रेस के नेतृत्व वाला संप्रग है, जो अपनी साख व रसूख बरकरार रखने के लिए संघर्षरत है, तो भाजपा नेतृत्व वाला राजग इन चुनावों में पूरी ताकत से उतर तो रहा है, लेकिन वह असम को छ़ोडकर बाकी राज्यों में तो सिर्फ खाता खोलने के लिए ही संघर्ष करता नजर आयेगा।

पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में एक तरफ वाम सरकार के 35 वर्ष का शासन है, तो दूसरी तरफ तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी द्वारा सत्ता परिवर्तन पर दिखाये जाने वाले सपने हैं। इन्हीं दो विकल्पों में मतदाताओं को अपने लिए एक का चयन करना है। जहां एक तरफ नवजागरण लाने के लिए ममता मतदाताओं को रिझाने पर लगी हैं वहीँ सर्वहारा सरकार के मुखिया बुद्धदेव भट्‌टाचार्य के पास अब राज्य के विकास में अपने योगदान को गिनने के लिए कुछ नहीं सूझ रहा है।

स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासन से लेकर साहित्य में भी माकपाकरण के आरोप लगाये जा रहे हैं। पिछले 35 वर्षों में लगभग 56 हजार छोटे-ब़डे कलकारखाने बंद हो गये। ऐसे में माकपा सरकार आइटी क्षेत्र में तरक्की, 50 हजार नये शिक्षकों की नियुक्ति जैसी उपलब्धियों को भी गिना रही है।

दूसरी तरफ तमिलनाडु में टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले और करुणानिधि के पारिवारिक सदस्यों की अलोकप्रियता के चलते प्रदेश की राजनीति में जयललिता एक बार फिर उभर कर सामने आ गई हैं। अपने परंपरागत वोट बैंक के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी उनका जनाधार ब़ढा माना जा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सत्ता विरोधी लहर, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला जैसे मुद्दों की बदौलत जयललिता सत्ता में आने का ख्वाब देख रही हैं, तो द्रमुक अपने जनाधार को बरकरार रखने की कोशिश में लगा है।

पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एम. करुणानिधि की पार्टी पर पारिवारिक झग़डे और टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला इस चुनाव में इस दल के नतीजों पर भारी प़ड सकते हैं। अभिनेता विजयकांत के नेतृत्व वाला डीएमडीके इस चुनाव में ब़डा खिल़ाडी बनकर उभर सकता है। जयललिता इस दल के साथ मिलकर चुनाव ल़डने की सोच रही हैं।

रही बात केरल की तो वहां भी हालात लगभग पश्चिम बंगाल की तरह ही है। यहां भी वाम दलों की सरकार खतरे में है। माकपा के दो ब़डे नेताओं बीएस अच्युतानन्दन व राज्य माकपा के सचिव एम विजयन के बीच लगातार जारी संघर्ष ने सूबे में पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। केरल से लाल झ़ंडे की वामपंथी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार उख़डती तो दिख रही है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्षी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के लिए सत्ता तक पहुंचने का रास्ता इतना आसान भी नहीं है।

इसकी मुख्य वजह दिल्ली की यूपीए से लेकर तिरुअनंतपुरम तक यूडीएफ के नेताओं पर भ्रष्टाचार व घोटाले के आरोप साथ ही राज्य के कई नेताओं जी यौन उत्प़ीडन और भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्तता उनकी मुश्किलें ब़ढा सकती हैं। वहीं दूसरी तरफ राज्य में स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में यूडीएफ की शानदार सफलता के बाद तो उन्हें सत्ता सस्ते में मिलती दिखने लगी है।

असम में सबसे रोचक व कांटे का चुनाव है। 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को इस बार असम गण परिषद के साथ भाजपा से भी मुकाबला करना प़ड रहा है। भाजपा यहां पर 30 सीटों का लक्ष्य सामने रखकर चल रही है। पिछली बार उसके दस विधायक जीते थे। कांग्रेस जहां सत्ता बरकरार रखते हुए लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए ल़डेगी, वहीं विपक्षी दलों के लिए चुनौती अपना आधार बनाये रखने की है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राज्यसभा में असम का प्रतिनिधित्व करते हैं. पिछले महीने उन्होंने राज्य का दौरा किया था और विकास संबंधी कई परियोजनाओं की घोषणा की थी। उल्फा के साथ प्रस्तावित वार्ता से भी फायदा मिलने की कांग्रेस को उम्मीद है।

कुल मिलाकर असम में 126 विधानसभा सीटों पर चुनाव होंगे, केरल में 140, तमिलनाडु में 234, पुदुचेरी में 30 और पश्चिम बंगाल में 294 सीटों पर चुनाव होंगे। तमिलनाडु में विपक्षी अन्नाद्रमुक के विजयकांत की पार्टी डीएमडीके के साथ हाथ मिलाने की प्रबल संभावना है जिससे द्रमुक की चुनौतियां बढ़ गयी हैं। वाम दलों के अलावा एमडीएमके पहले से ही अन्नाद्रमुक मोर्चे में है। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा को ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से कड़ी चुनौतियां मिल रही हैं।

असम में कांग्रेस पिछले दो कार्यकाल से सत्ता में है और उसे राज्य में विपक्षी अगप के साथ भाजपा भी चुनावी तैयारियों में लगी हुई है। केरल में वाम मोर्चा एलडीएफ को कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ से जोरदार टक्कर मिलने की संभावना है और पुडुचेरी में कांग्रेस सत्ता में है और इसे कायम रखने के लिए वह पूरा प्रयास कर रही है।

अवनीश। 14 मार्च 2011

Thursday 10 March 2011

बुरका पहनने से लेकर आधुनिक शिक्षा, टेलीविजन तक देखने के खिलाफ फतवा यदि कहीं जारी होता है, तो वह उत्तर प्रदेश



आज आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के आरोप में सर्वाधिक यूपी के लोग ही जेलों में निरुद्ध हैं। बुरका पहनने से लेकर आधुनिक शिक्षा टेलीविजन तक देखने के खिलाफ भी फतवा यदि कहीं जारी होता है, तो वह उत्तर प्रदेश है। ऐसा नहीं है कि कट्‌टरपंथ के खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती, लेकिन वह आवाज नककारखने में तूती के समान होती है। ऐसी अभिव्यक्ति करने वालों को चौतरफा घेर लिया जाता है। जिस प्रकार वास्तनवी को घेर लिया गया।
मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी अपना पदभार संभालने के साथ ही चर्चा में आ गए हैं। चर्चा में आने की अनेक वजह हैं। वस्तानवी दारुल उलूम के पहले मुखिया हैं, जो एमबीए किए हुए हैं। उन्होंने अपने स्थापित किए मदरसों में आधुनिक विज्ञान, इंजीनियरी और चिकित्सा जैसे विषय शामिल किए हैं। देवबंद के इतिहास में वे पहले गुजराती कुलपति हैं और गुजरात में मुस्लिमों की स्थिति पर उनकी टिप्पणी भी विवाद का विषय बनी है।
सुन्नी मुसलमानों के दो ‘मठ’ है। एक देवबंदी कहलाता है और दूसरा बरेलवी। देवबंदियों का विस्तार इस देश से बाहर भी है। पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में सक्रिय अनेक उग्रवादी संगठनों के कर्ताधर्ता देवबंदी मठ के अनुयायी है। तालिबानियों की शुरुआत भी इसी इलाके से हुई जो इस समय विश्व शांति के लिए सबसे ब़डा खतरा बना हुआ है। देवबंद पर सौ वर्ष से भी अधिक समय से मदनी परिवार का कब्जा है। असद मदनी कई बार कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं। मुसलमानों के सामाजिक अथवा पंथिक सरोकार के बारे में सबसे ज्यादा फतवा देवबंद से ही जारी होता है।
आप को याद होगा इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था दारुल उलूम देवबंद इस साल जीवन से जुड़े अलग-अलग फतवों को लेकर खासी चर्चा में रही। देवबंद ने जहां रक्तदान को हराम करार दे दिया, वहीं महिलाओं और पुरुषों के एक साथ काम करने को भी अवैध बताया। देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है। इस्लाम में फतवे की बहुत मान्यता है। फतवा मुफ्ती से तब मांगा जाता है, जब कोई ऐसा मसला आ जाए जिसका हल कुरआन और हदीस की रोशनी में किया जाना हो। लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसा हुआ है कि फतवों की बाढ़ आ गयी है।
इस फतवों की इतनी अति हो गई कि स्वयं देवबंद के आलिमों को उसका संज्ञान लेना प़डा। यह ठीक है कि दारुल उलूम में केवल मजहबी शिक्षा ही दी जाती, लेकिन वहां की मानसिकता पर कट्‌टरपंथ का पूर्ण अधिपत्य है। शायद यही कारण है कि वास्तनवी के किसी कथन को ‘अपराध’ मानकर उनको हटाने की मुहिम इतना वीभत्स रूप धारण कर गया कि उन्होंने त्यागपत्र दे दिया, लेकिन कुछ उदारवादियों ने उन्हें पद छ़ोडने से रोक लिया , जिसके विरोध में छात्रों का आंदोलन तेज हो गया। इसमें वहां के आलिम भी शामिल है। 
उत्तर भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए मजहबी शिक्षा की प्राथमिकता के अलावा दो और शिक्षा केन्द्र है। एक दिल्ली की जामिया मिलिया और दूसरा अलीग़ढ का विश्वविद्यालय। देवबंद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब कुलपति को हटने के लिए विवश किया । जामिया मिलिया और अलीग़ढ में तो बहुत बार ऐसा हो चुका है। जिस कुलपति ने कट्‌टरवादियों की इस्लामी अवधारणा से हटकर विचार व्यक्त किया या उदारवादी प्रयास किए उसे पद छ़ोडना प़डा। ऐसा क्यों होता है। शयाद वास्तनवी के एक अन्य साक्षात्कार में कही गई बात इसका मुख्य कारण हो। अपने खिलाफ अभियान की तीव्रता पर त्याग पत्र देने की घोषणा करते हुए कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के उलेमाओं पर राजनीतिक प्रभाव बहुत ज्यादा है।
इसलिए जब वास्तनवी ने यह कहा कि उत्तर प्रदेश के उलेमा राजनीतिक प्रभाव में अधिक हैं, तब मुझे न केवल इन दो घटनाओं का स्मरण हो आया अपितु उनके विरोध से यह भी समझ में आया कि किन प्राथमिकताओं में उलझने के कारण उत्तर प्रदेश का मुसलमान सिर्फ वोट बैंक भर बनकर रह गया है। 
यदि उसे यह बताया जाये कि गुजरात का पुलिस महानिदेशक एक मुसलमान है, तो वह मानने के लिए शायद ही तैयार हो, क्योंकि उसके भीतर यह अवधारणा पैठ गई है कि मोदी ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जिससे मुसलमान एक सामान्य नागरिक के समान जी सके।किंतु अफसोस इस बात का है कि गणतंत्र को चलाने और राजधर्म को निभाने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वे वोट बैंक से आगे की सोच नहीं पाते। वे देशद्रोह को भी जायज मानते हैं और उनके लिए अभिव्यक्ति के नाम पर कोई भी कुछ भी कहने और बकने को हर देशद्रोही आजाद है। 

Saturday 5 March 2011

अब अरुंधती की पेंटिंग बनी विवाद का विषय


अब अरुंधती की पेंटिंग बनी विवाद का विषय
नई दिल्ली। विवादित लेखिका अरुंधति राय एक बार फिर इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं। लेकिन इस बार अरुंधती अपने विवादित बयानों को लेकर नहीं बल्कि पेंटिंग को लेकर चर्चा में है। कला जगत के कुछ लोगों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दिया तो किसी ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताया है।

दरअसल एक पेंटिंग में अरुंधति को अल कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन और चीन के एक तानाशाह माओ के साथ दिखाया गया है। तस्वीर में अरुंधति को इन दोनों के बीच निर्वस्त्र दिखाया गया है। और यह पेंटिंग युवा चित्रकार प्रणव राय ने बनायीं है।

प्रणव का कहना है कि उन्होंने ऐसा अरुंधति के प्रति विरोध जाहिर करने के लिए किया है। पेंटिंग को नाम ‘गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ यानि पंद्रह मिनट की प्रसिद्ध की देवी दिया गया है। अरुंधति की बुकर अवार्ड विजेता किताब ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ और एंडी वारहोल के बयान ‘इन कमिंग टाइम एवरीबडी विल गेट फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ को मिलाकर पेंटिंग का नाम ‘गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ दिया गया है।

प्रणव के अनुसार जैसे एक मदारी बंदर को केले का लालच देकर नचाता है उसी तरह अरुंधति पब्लिसिटी के लिए किसी के भी के हाथ की कठपुतली बनने को भी तैयार रहती हैं। कश्मीरी अलगाववादियों के समर्थन में अरुंधति का विवादित बयान भी पेंटिंग का विषय है। पेंटर अरुंधति के बेड पर ओसामा बिन लादेन को भी दिखाया है। अरुंधति की न्यूड तस्वीर में एक तरफ माओ तो दूसरी तरफ ओसामा बैठा है। बेड पर बिखरे सिक्के भी कुछ इशारा कर रहे हैं।

ज्ञातव्य है कि प्रणव इससे पहले दाऊद इब्राहिम के साथ मशहूर पेंटर एमएफ हुसैन की न्यूड तस्वीर बनाकर विवादों में रह चुके हैं। अब उनकी अरुंधति की इस पेंटिंग पर बड़ी बहस शुरू हो गई है। प्रणव का कहना है कि उन्होंने काफी सोच समझकर इस तस्वीर को तैयार किया है।

Tuesday 1 March 2011

गैर मुस्लिम लड़की-लड़के से शादी हराम : देवबंद

इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था दारुल उलूम देवबंद इस साल जीवन से जुड़े अलग-अलग फतवों को लेकर खासी चर्चा में रही। अब देवबंद ने हालिया जारी एक फतवे में किसी मुस्लिम लड़के या लड़की की गैर मुस्लिम लड़की-लड़के से शादी को हराम बताया गया है।

इस संस्था ने हाल ही में जारी एक फतवे में कहा कि ऐसी शादी हराम है। साथ ही कहा गया कि शादी के प्रस्ताव पर कोई भी फैसला करते वक्त पैसे को नहीं धर्म को तरजीह दी जानी चाहिए

संस्था से निकाह संबंधी फतवों की श्रेणी में सवाल पूछा गया है, 'कोई लड़की ऐसे लड़के से शादी करना चाहती है, जो बहुत अमीर है और उसे अच्छा जीवन दे सकता है और इस कोशिश में वह अपने माता-पिता की पसंद को स्वीकार नहीं करती, क्योंकि माता-पिता ने जो रिश्ता देखा है उसमें पैसे से ज्यादा धर्म को अहमियत दी जा रही है। ऐसे में क्या अभिभावकों को लड़की की पसंद को मान लेना चाहिए या लड़की को अभिभावकों की पसंद को?'

ऐसे फतवे की बात कोई नई नहीं है। पहले भी ऐसे कई फतवे सुर्खियों में रहे हैं।

हकीम की इजाज़त से ही हो गर्भपात- दारुल-उल-देवबंद द्वारा जारी किए गए फतवे के मुताबिक अब किसी भी मुस्लिम महिला को गर्भपात करवाने के लिए हकीम से आज्ञा लेनी होगी।

महिलाएं पुरुषों से दूरी रखें- देवबंद मदरसे द्वारा मुस्लिम महिलाओं के लिए फतवा जारी किया गया था। देवबंद ने अपने फतवे में मुस्लिम कामकाजी महिलाओं को दफ्तरों मेंदू  पुरुषों से घुलने मिलने के लिए मना किया था।

डाई को ना मेहंदी को हां- देवबंद ने मुस्लिम समुदाय के पुरुष और महिलाओं से हेयर डाई का इस्तेमाल करने से भी रोका है। इस संबंध में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देवबंद ने इसे 'धोखा' कहा और महंदी को ही उपयुक्त बताया है।

सानिया-शोएब की नजदीकियों पर फतवा - पिछले दिनों चर्चा में रही टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक की शादी को लेकर भी एक फतवा जारी हुआ था। सुन्नी उलेमा बोर्ड को सानिया और शोएब के शादी से पहले साथ एक घर में रहने और मिलने जुलने पर आपत्ति थी। बोर्ड के अनुसार निकाह के पहले एक छत के नीचे रहना गैर इस्लामिक है। ये फतवा उस वक्त जारी हुआ था जब शोएब हैदराबाद में बंजारा हिल्स स्थित मिर्जा हाउस में एक हफ्ते से रह रहे थे।

वंदे मातरम के खिलाफ फतवा - जमात ए उलेमा हिंद ने मुसलमानों के वंदेमातरम गाने के खिलाफ फतवा जारी किया था। जमात के अनुसार वंदेमातर गाना इस्लाम के खिलाफ है। देवबंद द्वारा इस बात को मंजूरी भी दी गई थी। इस फतवे के पीछे तर्क ये था कि वंदेमातरम गाने में कुछ लाइनें इस्लाम के खिलाफ हैं

महिलाओं के मॉडलिंग के खिलाफ फतवा - दारूल उलूम देवबंद ने मुसलमाम महिलाओं द्वारा मॉडलिंग को शरियत कानून के खिलाफ बताया है। उन्होंने महिलाओं के रैम्प पर शारीरिक प्रदर्शन को गैर इस्लामिक बताया है।

एयरपोर्ट पर बॉडी स्कैनर के खिलाफ फतवा - एक इस्लामिक संगठन ने एयरपोर्ट पर मुसलमानों द्वारा फुलबॉडी स्कैनर के खिलाफ फतवा जारी किया है। दारूल उलूम देवबंद और उलेमा काउंसिल ने भी इस फतवे का समर्थन किया था। उनके अनुसार फुलबॉडी स्कैन इस्लामिक कानून और मानव गरिमा के खिलाफ है। जबकि कुछ संगठनों के अनुसार यदि सुरक्षा कारणों के लिए जरूरी हो तो उन्हें फुलबॉडी स्कैन से कोई आपत्ति नहीं

फ्रांस के सामान के खिलाफ फतवा - पिछले दिनों फ्रांस में बुर्के को लेकर काफी बवाल हुआ। जिसके बाद दारूल उलूम देवबंद ने फ्रांस में बना सामान खरीदने के खिलाफ फतवा जारी कर दिया। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की बुर्के के खिलाफ टिप्पणियों के बाद मुसलिम धर्मगुरू खासे नाराज थे।

भारत हमला करे तो जेहाद के लिए फतवा - पाकिस्तान में मुसलिम धर्मगुरूओं ने फतवा जारी किया था कि यदि भारत उनके देश पर हमला करता है तो जेहाद के लिए फतवा जारी किया जाएगा। जिसके अंतगर्त सभी लोगों के लिए जेहाद में शामिल होना अनिवार्य किया जाएगा। उलेमाओं द्वारा लाहौर में पाकिस्तान की सुरक्षा को लेकर आयोजित एक मीटिंग में ये फतवा जारी किया गया।

फेसबुक के खिलाफ फतवा- फेसबुक को गैरइस्लामिक बताते हुए मुस्लिम संगठन ने इसके इस्तेमाल के खिलाफ फतवा जारी किया था। संगठन के अनुसार फेसबुक परिवार को बिगाड़ता है। संगठन ने घोषणा कर दी की जो भी मुसलमान फेसबुक का इस्तेमाल करता है वह पापी है। उनके अनुसार फेसबुक का इस्तेमाल करने से मिस्त्र में कुछ जोड़ों का तलाक फेसबुक अकाउंट के कारण हुआ।


दारुल उलूम देवबंद इस साल जीवन से जुड़े अलग-अलग फतवों को लेकर खासी चर्चा में रही। देवबंद ने जहां रक्तदान को हराम करार दे दिया, वहीं महिलाओं और पुरुषों के एक साथ काम करने को भी अवैध बताया। देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है। इस्लाम में फतवे की बहुत मान्यता है। फतवा मुफ्ती से तब मांगा जाता है, जब कोई ऐसा मसला आ जाए जिसका हल कुरआन और हदीस की रोशनी में किया जाना हो। लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसा हुआ है कि फतवों की बाढ़ आ गयी है।

वही दूसरी ओर भारत का मुसलमान बदल रहा है। वह ज़्यादा विकास चाहता है, रोज़गार चाहता है। अब मुसलमान सानिया मिर्ज़ा की स्कर्ट को लेकर परेशान नहीं होता। बच्चों के लिए शिक्षा चाहता है, ताकि प्रतियोगिता के इस दौर में मुक़ाबला कर सके। उसकी डिमांड सेकुलर हो गई है, लेकिन अ़फसोस की बात यह है कि खुद को मुसलमानों का नेता और रहनुमा समझने वालों को ही इस बात की भनक नहीं है।
1 MARCH 2011