Wednesday 20 July 2011

राहुल भी एक चौथाई हिन्दू हैं...?

अभिनेत्री कटरीना कैफ ने राहुल गांधी को आधा भारतीय कहकर विवाद खड़ा कर दिया है। उन्‍होंने कहा कि वो आधी एशियाई और आधी यूरोप की हैं लेकिन उन्‍हें इस पर गर्व है, ठीक उसी तरह जैसे राहुल गांधी आधे भारतीय और आधे इटली के हैं। कटरीना के इस बयान का तूल पकड़ना लाजिमी है क्‍योंकि राहुल गांधी की नागरिकता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। इसलिए नहीं कि वो गाँधी परिवार के युवराज हैं, वरन इसलिए कि राहुल का जन्‍म भारत में ही हुआ है, उनके पास भारतीय नागरिकता वाला पासपोर्ट है, उनके पिता भारतीय थे।

प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था.... किसी को मालूम है ? राहुल आधा भारतीय तो हैं ही, साथ मे एक चौथाई हिंदू भी हैं क्योंकि इनके दादा यानी फरोज़ (गाँधी!) पारसी थे इस का मतलब है कि राहुल के पिता राजीव गाँधी आधा हिंदू हुए और जब आधा हिंदू एक क्रिश्चन के साथ शादी करता है तो इस हिसाब से तो उनकी औलाद यानी राहुल (बाबा!) आधा क्रिश्चन- एक चौथाई पारसी और एक चौथाई हिंदू ही तो हुए। अगर कैटरिना ने राहुल को आधा भारतीय कह दिया तो इसमें इतना बवाल क्यों मचा है। शायद इसलिए कि राहुल गाँधी आधे नहीं कहीं से भी भारतीय नहीं है। (क्योंकि इन्होंने कुछ दिन पहले भट्टा परसौल में खुद ही बोला की मुझे भारतीय होने में शर्म आ रही है।)

फिल्म अभिनेत्री कैटरिना के इस बयान के बाद कांग्रेस के बड़बोले प्रवक्ता मनीष तिवारी (जिनके लिए "सोनिया" राहुल तमेव माता च पिता तमेव तमेव बंधू च सखा तमेव,,,,,,,,, से भी बढ़ कर भक्ति है) से जब पत्रकारों ने प्रतिक्रिया जननी चाही तो तिवारी ने एक तरह से यह जताने का प्रयास किया मानो वह कटरीना को जानते ही नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'वह कौन है? मैं नहीं जानता। कल को आप मुझसे जॉनी लीवर के बयान पर प्रतिक्रिया पूछेंगे। देश में राजनीतिक चर्चा को आप किस स्तर तक ले जाना चाहते हैं।' तिवारी जी गाँधी परिवार कि चमचागिरी में शायद यह भूल गए कि जितने लोग जॉनी लीवर को जानते हैं, उसके एक चौथाई लोग भी आपको नहीं जानते होंगे। तो फिर कटरीना की तो बात ही छोड़ दो। इनको इस बात को सपष्ट रूप से समझनी चाहिए कि जॉनी लिवर इनसे ज़्यादा लोकप्रिय और विश्वशनीय है। अगर वो इनके खिलाफ खड़ा हो जाए तो इनकी जमानत जप्त हो जाए।

इसी गाँधी परिवार ने भ्रष्टाचार के पानी में लोकतंत्र की चीनी मिला कर भारतीयों को ऐसा शरबत पिलाया गया जिस का साईडिफेक्ट आज 60 साल बाद साफ साफ उभर कर सामने आया है। भारतीय जनता को तो सोनिया की दस वर्षों की राजनीति की कोई सुन्दर उपलब्धि नहीं दिखती, पर मीडिया और गांधी दासों के हिसाब से गाँधी परिवार के बिना भारत का अस्तित्व ही खतरे में है। गांधी दासों (गांधी परिवार के दास) के लिए अपने देश से बड़ा गाँधी परिवार है तभी तो आतंकवादी-देशद्रोही कितना भी अपने राष्ट्र-संस्कृति का अपमान करे इनके कान पर जूं तक नहीं रेंगती ... जैसे ही किसी ने सोनिया, राहुल आदि के बारे में कुछ कहा इन गाँधी दासों के भावनाएं इतनी आहात हो जाती है कि ये गाँधी दास खून-खराबे पे उतर आते हैं।

केटरीना ने अंजाने मे भी शायद सही कहा, अगर वह आधे भारतीय है तो आधे भारतीय ही हुए ना. खैर भारत एक ऐसा देश है जो इसकी संस्कृति से प्यार करने लगे तो वह भारतीय हो जाता है। दुनिया मे भारत ही एक देश है जो वसुधैव कुटुम्बकम को मानता है, परंतु जो लोग इस देश मे रहकर भी अपना धन विदेशों मे जमा कराते है, खाते यहाँ का है और गुण गाते है विदेश का, विदेशों से आकर यहाँ पर वातावरण प्रदूषित कर रहे हैं परेशानी उन्ही से है। यही तो असली भारत है दोस्त ,पहले भी हम लायक राजाओ के नालायक पुत्रो को झेलते रहे इसी मानसिकता के चलते पहले मुस्लिमो और फ़िर अग्रेजॊ के गुलाम रहे और अब अग्रेजीदा लोगो तथा काग्रेस परिवार की गुलामी करने के लिये अभिशिप्त है..


अभी कुछ महीने पहले एक पत्रकार ने सवाल उठाया था कि संसद की वेबसाईट पर सांसदों के बारे जो सब कुछ जानकारी दी गयी है उसमे सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के नाम के सामने उनका धर्म क्यों नहीं लिखा गया है ? उस पत्रकार को कांग्रेस के ईशारे पर नौकरी से ही निकाल दिया गया. कितनी आजीब बात है की कांग्रेस और सोनिया गाँधी अपने किताबो में तो अमर शहीदों की जाति पुरे देश को अपमानजनक तरीके से तो बताते है लेकिन अपने "महारानी " और "युवराज " का धर्म भी वो इस देश को नहीं बताते .

Tuesday 19 July 2011

इस दहशत के पीछे आखिर मकसद क्या है ?

दिनांक – 13 जुलाई 2011

हर रोज की तरह देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई आज भी अपनी रफ़्तार से दौड़ रही थी; तभी अचानक तेज धमाकों की आवाज होती है और उसके बाद चारों तरफ चीख पुकार। 10 मिनट के अंतर पर झवेरी बाज़ार, दादर और ओपेरा हाउस में सिलसिलेवार तीन विस्फोट में कम से कम 23 लोगों की मौत और करीब 136 से ज्यादा लोग घायल। इस तरह से एक और आतंकी घटना को अंजाम दे दिया जाता है

धमाकों के बाद लोग सदमे में नजर आए, पर दुर्भाग्य की बात यह रही कि हर बार की तरह इस बार भी धमाकों का धुआँ छँटते ही केन्द्र सरकार और विपक्षी नेताओं ने एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर दिए। एक के बाद एक लगातार आतंकी हमलों को सहने वाली मुंबई आतंकियों का आसान निशाना बन चुकी है, लेकिन हैरान करने वाला तथ्य यह है कि आतंकी हमलों में हताहतों की संख्या के आधार पर यह शहर आतंक के केंद्र माने जाने वाले कराची और काबुल के साथ खड़ा है। धमाके की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से किसी आतंकी संगठन ने अभी तक नहीं ली है लेकिन शक की सुई इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) और सिमी की तरफ साफ़ तौर पर इंगित करती है। आखिर इस धमाके के पीछे क्या है इनका मकसद..।

आतंकवादी संगठनों का बैक्टेरिया जिस दर से दुनिया में बढ़ रहा हैं उससे लगता है कि यह आने वाले सालों में लाइलाज बीमारी बन जाएगा। सिर्फ भारत की बात की जाए तो यहां विभिन्न राज्यों में 175 से अधिक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। प्रमुख राजनीतिक व व्यवसायिक शहर इनके निशाने पर हैं। पाकिस्तान, तालिबान, ईराक तथा अन्य पड़ोसी देशों में बच्चों को आतंकवाद की पढ़ाई में अव्वल बनाया जा रहा हैं। इनके हाथों में किताबों की जगह हथियार होते हैं। राजनैतिक समर्थन से पोषित हो रहे यह संगठन इतने हाइटेक हैं कि लैपटॉप से लेकर रॉबोट रचने तक की कला इन्हें आती हैं।

इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) यानि वो गुट जिसे केंद्र सरकार पिछले साल जून में आतंकी संगठन घोषित कर चुकी है। अलग-अलग धमाकों में 500 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले इस आतंकी संगठन के तार पाकिस्तान से भी जुड़े हैं। जेहाद के नाम पर बेगुनाहों का खून बहाने वाले इस आतंकी संगठन का नाम सबसे पहले 23 फरवरी 2005 को उस वक्त चर्चा में आया जब उसने वाराणसी में ब्लास्ट किया था। 

सही यह होता की बयानबाजी के बजाय इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई रूपरेखा बनाई जाती। इस पर गंभीरता से चिंतन की जरूरत है, क्योंकि इन घटनाओं के होने के पीछे जो कारण हैं, वह इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आतंकियों ने इस देश में किस हद तक जड़ें जमा ली हैं।

इसके साथ ही केन्द्र और राज्य सरकारों को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के बारे में सोचना होगा। शीर्ष नेतृत्व को कुछ कठोर कदम उठाना ही होंगे, भले ही इसके लिए उन्हें अपने राजनैतिक हित भी खतरे में क्यों न डालना पड़ें, क्योंकि नेता हो या आम आदमी सबका वजूद इस देश से है, इसकी सुरक्षा सर्वोपरि है। 


दिल्ली, मुंबई या कोलकाता के वातानुकूलित क्लब और होटलों में गोष्ठी करने वाले कुछ भ्रष्ट बुद्धिवादियों के मन भले ही अपने इन साथियों के लिए धड़कते हों पर आम नागरिक के मन में इनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है। उसकी दृष्टि में ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। गड़बड़ी कहाँ है और इसका मूलकहाँ है, यह सभी जानते हैं, लेकिन स्वीकार करने से कतराते, मुँह छिपाते हैं। लेकिन दाद देनी होगी भारत देश की जहां देशभक्तों का अपमान और आतंकियों का सम्मान होता है
अवनीश सिंह