Tuesday 3 May 2011

अमेरिकियों में बदला लेने की भावना तो है


कल दिनभर समाचार चैनलों पर एक खबर चल रही थी। अमेरिका ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मार गिराया। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के 10 साल बाद अमेरिका ने अपना बदला लिया। यह अमेरिकी सरकार और उसकी जनता की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। इसके पीछे कारण जो भी हो लेकिन इस बात की सराहना और तारीफ तो करनी ही चाहिए कि अमेरिकियों में बदला लेने की भावना तो है ही।
इसके विपरीत भारत में धर्मनिरपेक्ष बनने की होड़ में देश की दशा-दिशा तय करने वाले तथाकथित बुद्धजीवी और हमारे नेताओं की सोंच सहिष्णु है, इनमें गांधीवादी विषाणु इस कदर घुसे हैं कि बदला लेने की भावना तो दूर अगर इनके एक गाल पर तमाचा लगे तो ये झुकर अपना पिछवाड़ा भी खोलने को तत्पर रहते हैं, उस पर अगर केंद्र में बिना रीढ़ की इटलीपरस्त सरकार हो तो क्या कहा जा सकता है।
आज समाज के नीति निर्णायक तत्व जिसका मुख्य पेशा केवल जनता के धन को लूट कर विदेशी बैंकों में जमा करना है, उनसे विकास और आत्मरक्षा के माडल पर बात करना बेमानी है। जिस देश में देशद्रोहियों को दामाद बनाकर रखा जाता हो भला उस देश से कौन डरने वाला है। आज हमारे ही टुकड़ों पर पलने वाला पाकिस्तान हमें ललकारता रहता है और पड़ोस मे बैठा चीन धमकाता रहता है। लेकिन सरकार अपनी स्वच्छ छवि के चक्कर में देश की जनता के भावनावों के साथ बलात्कार करने में लगी हुयी है। न तो इस देश के नेताओं में रत्तीभर स्वाभिमान बचा है और न ही देशप्रेम।
भारतीय राजनीति को अपने बाप की बपौती समझने वाले नेता और मंत्री, अम्मा, अप्पा, बहन और बहनोई को टेलिकॉम का लाइसेँसे देने के लिए अरबों रुपये लूटने में लगे हैं। कृषि मंत्री प्याज, चीनी, गेहूँ के दाम बढवाने, क्रिकेट खेलवाने, और बलवा के साथ के साथ घूमने में लगा है तो कोई आदर्शवादिता का परिचय देते हुए अपने रिश्तेदारों को फ़्लैट आवंटित करने में लगा है।
ये भारतवासी भी अजीब लोग हैं। पहले तो एक नपुंसक को प्रधानमंत्री बनाते हैं और फिर उससे बड़ी बड़ी उम्मीद पालने लगते हैं। अभी-अभी दिग्विजय का बयान नही देखा... देखिए कितने बेकरार है हमारे उदार, मानसिंह की पीढ़ी के वारिस जनाब दिग्विजय, लादेन का शाही अंतिम संस्कार करने के लिए। इनका बस चलता तो ये समुद्र में गोता लगाकर लादेन की लाश ढूंढ़ निकलते और विधिवत अंतिम संस्कार कर धर्म निरपेक्ष होने का अंतर्राष्ट्रीय पदक अपनी झोली में झटक लेते।
वो तो लादेन की बदकिस्मती थी जो वो पाकिस्तान मे जा छिपा और मारा गया, कहीं वो भारत आ गया होता तो किसकी मजाल थी जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश और कांग्रेस जैसी शर्मनिरपेक्ष सरकार के रहते आँख उठाने की भी हिम्मत करे। उसकी मुकदमे की फाइल/सज़ा की फाइल होम मिनिस्टीरी से दिल्ली सरकार और दिल्ली सरकार से राष्ट्रपति भवन और वहां से पी. एम. ओ. ऑफीस और वहां से वापस फिर से दिल्ली सरकार......के बीच इतना घूमती की लादेन की तो छोड़ो उसकी अनेकों पीढ़िया अपना भरपूर जीवन यापन कर भारत की धर्मनिरपेक्षता को मजबूती प्रदान करती। आख़िर होना भी चाहिए ऐसा हम एक धर्मनिरपेक्ष और उदार देश के नागरिक जो ठहरे, जिसे गांधीवादी सहनशीलता और अहिंसा रूपी कायरता की कुछ ज़यादा ही खुराक दी गयी है।
अवनीश सिंह

2 comments:

  1. जब तक कॉंग्रेस है इंडिया मे तब तक तो कुछ नही होने वाला... अगर तुमको दाऊद को बचना है तो इंडिया भेज दो आराम से कसाब और अफज़ल गुरु के साथ मस्ती से बिरयानी खाएगा .. दिग्गी राहुल और सोनिया मनमोहन उसकी सेवा करेगे......

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  2. bhai laden mara gaya hai ya nahi. iska fashla abhi ane wala waqt batayega, lakin jaha tak badla lene ki baat hai, to Hindustan ne kabhi kisi se badla nahi liya hai..

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