Thursday, 21 April 2011

तेरा क्या होगा अन्ना


 भारतीय राजनीति में लोगो के चरित्र पर कभी भी विश्वाश नही किया जा सकता है। जब तक लूट में एक साथ हैं तब-तक ईमानदार हैं अलग हटने के बाद इनको एक-दुसरे के अन्दर बेईमानी नज़र आने लगती है और फिर शुरू हो जाता है कीचड़ उछालने का काम। भारतीय राजनीति में 'शकुनि डिपार्टमेंट' दिग्विजय सिंह और अमर सिंह जैसा घटिया चरित्र देखने को नहीं मिल सकता है। वास्तव मे एक अपनी मैडम के लिए बलिदान कर रहा है और दूसरा शुरू से दलाली का काम कर रहा है।

यह सब वैसे ही हो रहा है जैसा अंदेशा था। आप सोच सकते हैं कि यह दुष्प्रचार अभियान किस तरह से उन लोगों पर बुरा असर डाल रहा है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई लड़ रहे हैं। (बाबा रामदेव जिसके ताज़ा शिकार बन चुके हैं) बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के नाम पर अरसे से चल रही अमूर्त बहस को मूर्त स्वरूप दिया। एक निर्गुण अकुलाहट को आंदोलन में तब्दील कर दिया और जनता को बात तेजी से समझ में आ गई। लेकिन बाबा के चार साल की मुहीम पर अन्ना का चार दिन का अनशन हावी हो गया।


आन्दोलन के शुरू होने के बाद से मीडिया ने जिस तरह कवरेज करना शुरू किया, वह शक तो पैदा कर ही रहा था पर इतने दूर की सोचकर योजना बनी है ऐसा अंदाजा नहीं था! रामदेव बाबा के प्रयासों का पूरा फायदा उठाकर; एक आन्दोलन खड़ा कर रातों-रातों अन्य चल रहे ज्वलंत मुद्दे (जिनसे सरकार की फजीहत हो रही थी) से सबका ध्यान भटका देना..... वाकई राजनीती में एक से बढ़कर एक शातिर खिलाड़ी है ! अन्ना हजारे का इस्तेमाल सेफ्टी बल्व की तरह हो चुका है, जो कुछ अब दिख रहा है उससे यह लगता है कि साजिश कामयाब हुई, इसकी गारंटी है कि आगे नौटंकी जारी रहेगी। 


भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के इस हाईटेक मुहीम के पीछे की सच्चाई धीरे धीरे जनता के सामने आने लगी है। इस मुहीम के अग्रणी तथाकथित समाजसेवी एक से बढकर एक निकले। बिकी हुयी मिडिया द्वारा प्रतीक बनें चेहरों के खिलाफ अमर सिंह ने मोर्चा संभाला है, जिनका खुद का राजनीतिक भविष्य अधर में है। राज्यसभा सदस्‍य और सपा के पूर्व नेता अमर सिंह ने कड़े शब्दों कहा, 'लोग मुझे दलाल कहते हैं। हां, मैंने मुलायम के लिए दलाली की है, लेकिन दलाली में शांति भूषण भी सप्लायर थे। अमर सिंह की ये बातें क्या साबित कर रहीं है। आप खुद ही समझ सकते हैं। 


भले ही यह दशा हीन भारत कि दिशा सूचक पहल है लेकिन इसेसे बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला है। अब इस बात से साफ़ साबित होने लगा है की सभ्य समाज की ओर से समिति के सदस्यों के नाम आन्दोलन शुरू होने से पहले ही तय हो गए थे और अन्ना हजारे, भूषण परिवार और नक्सलियों के दलाल अग्निवेश या किसी अन्य के द्वारा प्रायोजित इस आन्दोलन के चेहरे मात्न हैं। लेकिन दूसरी तरफ इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि लॊक पाल बिल सॆ सबसॆ ज्यादा डर किसॆ लग रहा हॆ जॊ कमॆटी बननॆ कॆ बाद सॆ नित नयॆ-नयॆ सगुफॆ छॊडॆ जा रहॆ है?

ये तथाकथित गांधीवाद के विषाणु से जनित कांग्रेस परदे के पीछे से गेम खेल रही है, कपिल सिब्बल (परोक्षत:) दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी प्रत्यक्षत: और द ग्रेट फिक्सर अमर सिंह का सीडी अभियान इसी रणनीति के तहत चलाया जा रहा है। पिछली बार जब दिग्विजय सिंह स्वामी रामदेव पर कीचड़ उछल रहे थे तब उन्होंने एक बात कही थी, "बाबा रामदेव नहीं जानते कि सरकार (कांग्रेस) होती क्या है ?" अब समझ आ रहा है कि कांग्रेस सरकार किस तरह की कीचड़ उछालने और भ्रम पैदा करने की राजनीति खेलती है।

अब जरा भ्रष्टाचार की लड़ाई में अन्ना का साथ देने की सोनिया गांधी और कांग्रेस की सहृदयता रूपी विवशता पर भी एक नजर डालिए। जिस प्रकार का अभूतपूर्व एवं देशव्यापी जनसमर्थन अन्ना हजारे के अनशन को मिल रहा था उसे देखते हुए इटलीपरस्त कांग्रेस के कर्णधारों के हाथ-पांव फूलने लगे थे। लोकपाल बिल से जनता का ध्यान बटाने के लिए जन कमेटी के सदस्यों की जन्म कुंडली खोज कर मीडिया में लाइ जा रही है, कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी अन्ना को लिखे अपने पत्राचार के शिष्टाचार में भष्टाचार मिटाने के प्रति अपनी निष्ठां दुहरा रही रहीं हैं दूसरी ओर उन्होंने चरित्र हनन अभियान के तहत अपने प्यादे दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल को कीचड़ उछालने का काम सौंप दिया है। अमर सिंह तो हैं ही कांग्रेस के पुराने सेवक, सो एक ठेका कांग्रेस ने उन्हें भी दे दिया है।

उससे बड़ी गलती तो अन्ना ने की पत्र लिखकर। चिट्ठी उसे लिखी जो खुद भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। भ्रष्टाचार के दलदल के कीड़ों-मकोड़ों से अन्ना ने भ्रष्टाचार में सहयोग की उम्मीद पाल ली, इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी। बेचारे सिविल सोसायटी के सदस्य, कहाँ चले थे भ्रष्टाचारी नेताओ और अधिकारियों के खिलाफ क़ानून बनाने....... कहाँ खुद ही सफाइ देते फिर रहे हैं... कुल मिलाकर नैतिकता के रथ पर सवार होकर हवा में उड़ रहे अन्ना हज़ारे इस लड़ाई को जीतकर भी हार गये लगते हैं... वहीं दूसरी तरफ सरकार हार कर भी जीत गयी है...। मस्तिष्क मंथन के बाद अमृत या विषरूपी जो विचार सतह पर आया उसका मतलब यह है कि सत्याग्रह करने वाले, आजादी के साठ साल बाद भी समझ नहीं पाए कि राजनीति में 'सत्यमेव जयते' सिर्फ एक नारा है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि जब गाँधी कुछ नहीं कर पाए तो उनके वादी क्या कर पाएंगे। यदि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहते हो तो ड्राफ्टिंग समिति से छद्म समाज सेवियों को हटाकर सुबह्मण्यम स्वामी, किरण बेदी, डॉ. अब्दुल कलाम व गोविंदाचार्य जैसे सच्चे समाज सेवियों को लो । ... ऐसा हो जाये तो कुछ बात बने....
अवनीश सिंह

3 comments:

  1. अपने विरोधियों का नाम लेते ही मुसीबत में फंसने का खास गुण रखने वाले अमर सिंह के "नाबालिग बयान" देने के हौंसले पर देश यकीन करें ना करे।लेकिन एक बात साफ है कि सोनिया को पूरा भरोसा है। जो काम दिग्विजय सिंह नहीं कर पा रहे हैं उसे दस रूपये की ब्लू फिल्म वाली सीडी में अमर सिंह ने निपटा दिया।बेशर्मी के एक्सक्लूसिव पुरोधा बन रहे दिग्विजय सिंह के सियासी नस्ल पर सोनिया का शक ठीक निकला।तोते की तरह बयान देकर गधे की तरह दहाड़ मारकर और गीदड़ की तरह शहर बदलने से कुत्ते की जाति नहीं बदलती।एक बात औऱ अन्ना विरोधी यूनियन में वही लोग हैं जो भ्रष्टाचार के "सियासी आभूषण" हैं....भूषण नहीं।

    ReplyDelete
  2. VIJAY G ..इस आंदोलन की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि इसने संयुक्त कमेटी को केंद्रीय मुद्दा बनाकर एक ओर लोकसत्ता और दूसरी ओर चुनी हुई संसद, दोनों की गरिमा गिरा दी।

    ReplyDelete