Thursday, 7 April 2011

अन्ना, कांग्रेस से चौकन्ना


पहले तो विकिलीक्स ने भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचाया, फिर बारी आई योग गुरु रामदेव की लेकिन अब अन्ना हजारे ने मोर्चा खोला है। एक के बाद एक लगातार हमले झेल रही कांग्रेस (वस्तुतः सोनिया और राहुल) नेतृत्व यूपीए सरकार बेचैन हो गयी है। सोनिया के इशारे पर बाबा रामदेव के खिलाफ दिग्गिलिक्स (दिग्विजय) ने जमकर भौंका, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अब तक हजारे के खिलाफ भौंकने के लिए इटली की रानी के खेमे में कोई वफादार सैनिक (कुत्ता) नहीं आगे आ रहा है।
पिछले कुछ महीनों में एक के बाद एक नए घोटालों के सामने आने से परेशान प्रधानमंत्री और संप्रग सरकार के साथ आम आदमी ने भी भारत को क्रिकेट विश्वकप जीतता देख राहत की सांस ली ही थी, कि वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलकर जीत के जश्न में खोए भारतीय जनमानस को मानो झकझोर सा दिया है। हालांकि यह भी सच है कि बड़ी खामोशी से शुरू हुई इस मुहिम ने अगर तूल पकड़ा, तो सरकार के लिए कई मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं।
लेकिन अब अन्ना को भारतीय राजनीति की धरोहर कांग्रेस और उनके चमचों से चौकन्ना रहना पड़ेगा। क्या पता कब कौन सा सांसद भरी सभा में गली दे। (जैसा की बाबा रामदेव के साथ हुआ) ... फिर दिग्गी, मनीष तिवारी जैसा कोई वफादार भारतीय मीडिया की असली औकात तौलते हुए अन्ना पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगवा दे।
उपभोक्तावाद ,बाजारवाद की शक्तियो ने आदमी को इतना अधिक आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना दिया है कि वह सिर्फ अपने परिवार का हित देख रहा है परन्तु कोई भी थोड़ा सा जागरूक होकर और निष्पक्षरूप से सोचता है तो वह निश्चित रूप से यह समझ जायेगा कि यह अब अधिक समय तक चलने वाला नही है। देश का युवा भारतीय दल के विश्व क्रिकेट अभियान की महाविजय को देशभक्ति से जोडकर आनन्दित होता है और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जुट करने वाले राम देव बाबा व अन्ना हजारे का समर्थन नहीं कर सकता। अगर यही है देशभक्ति तो ऐसी देशभक्ति पर धिक्कार है...
शक्तिआकांक्षा, वंशवाद, पैसा, पद, प्रतिप्ठा की हवस, घनघोर बेशर्म भ्रष्टाचार से आज सारे राजनैतिक दल कांग्रेसमय हो गये है बल्कि उससे भी आगे निकल गए है। यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है कि सिर्फ अपने लिए जीने वालों ने ही देश के गौरवशाली अतीत को रौंदा है। भारत की राजनीति में आज भ्रष्टाचार जितना बड़ा मुद्दा बन गया है, पहले कभी नहीं बना लेकिन अचंभा है कि किसी के पास उसका कोई ठोस इलाज़ दिखाई नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री माफी मांग लेते हैं और विपक्षी नेता उन्हें तुरंत माफ कर देती हैं।
भारत के इस विश्व विजय की खुशी मनाओ, लेकिन सिर्फ क्रिकेट की जीत पर नहीं, काला धन के रुप में जमा विदेश मे धन वापस अपने देश मे आने पर, भ्रष्टाचार को मिटने पर। नहीं तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। जरा गणित तो लगाओ, लगभग 300 लाख करोड़ रुपये भारत आ जाए तो देश के गांव की तश्वीर क्या होगी? क्या तुम नहीं चाहते देश की तरक्की ? आजादी की लड़ाई के बाद अब वक्त आया है फिर कुर्बानी का।

6 comments:

  1. bhaut accha bandhu magar mujhe isme bhi congress ki raajneeti ki buu aa rhi hai..asa lgta hai ki loktantra k manch pr raajneetik propganda chal rha ho..

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  2. क्या अन्‍ना दूसरे गांधी साबित हुए हैं? एक सवाल यह भी है क्‍या देश में कोई भी बदलाव लाने के लिए हर बार गांधी या हजारे के देशव्‍यापी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी? आखिर हमारी सरकारें इस दिशा में खुद पहल क्‍यों नहीं करतीं?

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  3. sunil ji अन्ना हजारे समर्थक इसे आजादी की दूसरी लड़ाई की संज्ञा दे रहे हैं और इस काम में उनका साथ मेधा पाटकर, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, एडवोकेट प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े, स्वामी अग्निवेश जैसे समाजसेवी भी शामिल हैं। हजारे के समर्थन में वह लोग शामिल है, जिन्हें नक्सलियों का समर्थक भी माना जाता है...
    अन्‍ना दूसरे गांधी नहीं हो सकते ....

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  4. bhai ji,lekh jabardast hai, par maine ispar pratikriya karne me derr kar di. aaj 9 april ko anna jeet gaye, an lokpal bill par sarkar maan gayi... lekin kaii sawaal ab bhi hai ki kya is samiti ko sara adhikaar dene se bhrastachar khatm ho jayega? kya koi shakti hai jo in chune huee maanniyo ko bhrastachar me liptata se bacha lega? kya inki pahuch tak sabhi bhrast maamle aa jayenge? aise kaii mudde hain jinpar abhi kuchh nahi kaha jaa sakta ha, par ummid yahi ki meri sabhi aashankaye galat ho aur ye samiti behtar kaarya ko anjaam de....

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