Friday, 29 April 2011

ये शीला सलमान खान वाली नहीं कांग्रेस वाली हैं...


इस वर्ष दिल्ली में रहते हुए सबसे चर्चित जो शब्द सुनने में आया वो था शीला...। शीला की चर्चा दो कारणों से अधिक हुयी, पहला कारण तो 'शीला की जवानी' था लेकिन लोग दूसरा कारण खुल कर नहीं बताते हैं। एक दिन एक सज्जन ने दबे हुए स्वर में कहा की अब तो शीला भी बदनाम हो गयी। जब मैंने अपनी स्मृतियों पर जोर डाला तो जो तथ्य सामने आया उस हिसाब से तो मुन्नी को बदनाम होना था.. फिर शीला कैसे बदनाम हुयी ?
मेरा दिमाग घूम फिरकर मुन्नी और शीला पर इसलिए जा रहा था क्योंकि इन दो नामों की इन दिनों बड़ी जबरदस्त चर्चा थी। हर गली और हर गावं में इनकी जवानी और बदनामी के किस्से आम हो चुके थे। मुन्नी जबसे बदनाम हुयी तो झंडुबाम भी बेचने लगीं थीं। जबकि शीला को अपनी जवानी पर घमंड आ गया था। वह हर चैनल में अपनी जवानी की विशेषताओं को बताते फिर रही थीं। लेकिन इन सबके बीच तीसरी किसी बात पर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था।
थोड़ी देर बाद उस महोदय ने स्वतः बताया कि दिमाग पर अधिक जोर डालने कि आवश्यकता नहीं है..ये शीला सलमान खान वाली नहीं कांग्रेस वाली हैं जो दिल्ली की मालकिन हैं। फिर याद आया कि देश की राजधानी में यही इटलीपरस्त कांग्रेसी सत्ता की मालकिन शीला दीक्षित हैं जो भ्रष्टमंडल खेलों को राष्ट्र की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए खेल के नाम पर देश के गरीबों और किसानों के पैसों को पानी की तरह बहाने में तनिक भी संकोच नहीं की। राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर नेता अपनी जेबें भरते रहे और जनता लोक लुभावन होर्डिंग्स और विज्ञापनों को देखकर संतोष करती रही। जनता का क्या है यह तो एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना छाप अनशन का समर्थन करेगी और दूसरी तरफ देश की तरक्की का मूल-मंत्र गाँधी-नेहरू को बताने वाले कांग्रेस को वोट देकर राजसत्ता पर काबिज कराने के अभियान में लग जाएगी। भले ही वही नेता सत्ता में रहते हुए जनता की भावनाओं के साथ बलात्कार करने में जुटें हों!!
बात भ्रष्टाचार पर निकली है तो दूर तलक अवश्य जाएगी, भले ही राष्ट्र के स्वाभिमान को ताख पर रखकर देश की सर्वोपरी सत्ता संसथान की महारानी के तलवे चाटने वाली जाच एजेंसियों को थोड़ी बहुत नौटंकी करनी पड़े। इस दस दिन की अय्याशी के लिए जिस तरह देश कि जनता के साथ बलात्कार किया गया,  दुनिया के इतिहास के इस सबसे बड़े घोटाले का सही ब्योरा तो शायद ही कभी आये। लेकिन सिर्फ लूट के मकसद से आयोजित इस खेल का खमियाजा जिस-जिस को उठाना पड़ रहा है, उसकी आह भी शायद किसी को न सुनाई दे।
अभी पिछले दिनों राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुई अनियमितता में राज्य सरकार के शामिल होने के आरोपों का सामना कर रहीं असंदिग्ध सांस्कृतिक सूझ-बूझ, सुरुचि और संस्कारों से लैस दिल्ली की माननीया मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्पष्ट कहा कि उनकी सरकार इस मामले में पाक-साफ होकर निकलेगी। आशय साफ़ है कहा जाता है कि 'जाको राखे साईयां मार सके न कोई' लेकिन इसी दोहे को दिल्ली की राजनीतिक भाषा में कहा जाता है 'जाको साथे सोनिया............'जिनके उपर इटली की महारानी और युवराज का हाथ हो उसका कोई क्या बिगाड़ पायेगा।
सीबीआई द्वारा राष्ट्रमंडल घोटाले में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े प्रतीक बने कलमाड़ी का कॉलर पकड़े जाने के बाद अब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर सवाल उठ रहे हैं। यह राष्ट्रमंडल खेल किस तरह भ्रष्ट कारनामों की एक गंगा लेकर आया, जिसमें समूची शीला सरकार ऊब-डूब रही है। करीब साढ़े सात सौ करोड़ रुपये का वह धन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के मद में घुसा दिया गया जो दलितों के विकास के लिए था। पिछले महज दो सालों से जिन लोगों की निगाह दिल्ली और दिल्ली के बाजार पर होगी, वे जानते होंगे कि शीला दीक्षित की सांस्कृतिक सूझ-बूझ, सुरुचि और संस्कार किसको-किसको निगल कर किसको समृद्ध बना रहे हैं।
किसी भी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी भी आयोजन का मेजबान बनना कई मायनों में महत्त्वपूर्ण और बहुत हद तक आर्थिक रूप से फायदेमंद भी साबित होता है। किंतु इसके साथ ही इस मुद्दे के कुछ अन्य बहुत से महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना भी जरूरी हो जाता है। जिस देश में अब भी सरकार बुनियादी समस्याओं से जूझ रही हो, अपराध, आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसी जाने कितनी ही मुसीबतें सामने मुंह बाए खड़ी हों, जिस देश को आज अपना धन और संसाधन खेल, मनोरंजन जैसे कार्यों से अधिक ज्यादा जरूरी कार्यों पर खर्च करने की जरूरत हो, वह विश्व में सिर्फ अपनी साख बढ़ाने के लिए ऐसे आयोजनों की जिम्मेदारी उठाने को तत्पर हो तो आप इसे किस नजरिये से देखेगे।
कलमाडी की नाटकीय गिरफ्तारी के माहौल के बीचगृह मंत्रालय द्वारा दिल्ली सरकार से शुंगलू कमिटी पर जवाब-तलब करना अनेक राजनीतिक सवालों को जन्म भी दे रहा है। लोग अब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से कमिटी की रिपोर्ट पर जवाब कुरेदने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सीएम पूरी तरह आश्वस्त हैं। मुख्यमंत्री की आश्वस्तता ने साफ़ कर दिया है कि शीला को बदनाम करने के लिए विपक्षियों को अभी और पापड़ बेलने पड़ेंगे।

Monday, 25 April 2011

आवामी काउंसिल सेक्रेटरी पर यौन शोषण का आरोप

आवामी काउंसिल सेक्रेटरी पर यौन शोषण का आरोप
इलाहाबाद। करेली में रविवार को आवामी काउंसिल फॉर डेमोक्रेसी एण्ड पीस द्वारा ‘मानवाधिकार और अल्पसंख्यक विषयक संगोष्ठी के दौरान एक युवक ने काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी पर यौन शोषण का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी। बाद में युवक को आयोजकों ने हॉल से जबरल बाहर निकाल दिया। युवक बाहर लोगों से गुहार लगाता रहा और अंदर मानवाधिकार हनन पर लेक्चर चलता रहा।

जानकारी के अनुसार मूल रुप से झांसी का रहने वाले जीशान अली के पिता इम्तियाज अली आईएसआई एजेंट होने के आरोप में कानपुर जेल में बंद है। जीशान के मुताबिक पुलिस ने उसके वालिद को झूठे मामले में फंसाया है। जीशान यहां कटरा में रहता है। उसने बताया कि पिता के केस में मदद के लिए काउंसिल जनरल सेक्रेटरी से मुलाकात की। जिसके बाद उन्होंने पूर कागजात लिए और बाद में आने को कहा। कुछ दिन बाद जनरल सेक्रेटरी ने दोबारा बुलाया और उसके साथ कथित रुप से शारीरिक संबंध बनाए।

जीशान का कहना है कि मना करने पर उन्होंने फर्जी मामले में फंसाने तथा इसकी सीडी सार्वजनिक करने की धमकी दी। बाद में मानवाधिकार कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि आरोप तो किसी पर लगाए जा सकते हैं तो वहीं तीस्ता सीतलवाड़ ने इस पर कुछ भी बोलने से इंकार किया।

इस मामले में जीशान ने डीआईजी से भी शिकायत की है जिस पर उन्होंने जांच का आश्वासन दिया है। आवामी काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी से उनका पक्ष जानने के लिए दूरभाष किया गया लेकिन दूरभाष नहीं उठा।

 अवनीश । 25 अप्रैल 2011

Thursday, 21 April 2011

तेरा क्या होगा अन्ना


 भारतीय राजनीति में लोगो के चरित्र पर कभी भी विश्वाश नही किया जा सकता है। जब तक लूट में एक साथ हैं तब-तक ईमानदार हैं अलग हटने के बाद इनको एक-दुसरे के अन्दर बेईमानी नज़र आने लगती है और फिर शुरू हो जाता है कीचड़ उछालने का काम। भारतीय राजनीति में 'शकुनि डिपार्टमेंट' दिग्विजय सिंह और अमर सिंह जैसा घटिया चरित्र देखने को नहीं मिल सकता है। वास्तव मे एक अपनी मैडम के लिए बलिदान कर रहा है और दूसरा शुरू से दलाली का काम कर रहा है।

यह सब वैसे ही हो रहा है जैसा अंदेशा था। आप सोच सकते हैं कि यह दुष्प्रचार अभियान किस तरह से उन लोगों पर बुरा असर डाल रहा है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई लड़ रहे हैं। (बाबा रामदेव जिसके ताज़ा शिकार बन चुके हैं) बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के नाम पर अरसे से चल रही अमूर्त बहस को मूर्त स्वरूप दिया। एक निर्गुण अकुलाहट को आंदोलन में तब्दील कर दिया और जनता को बात तेजी से समझ में आ गई। लेकिन बाबा के चार साल की मुहीम पर अन्ना का चार दिन का अनशन हावी हो गया।


आन्दोलन के शुरू होने के बाद से मीडिया ने जिस तरह कवरेज करना शुरू किया, वह शक तो पैदा कर ही रहा था पर इतने दूर की सोचकर योजना बनी है ऐसा अंदाजा नहीं था! रामदेव बाबा के प्रयासों का पूरा फायदा उठाकर; एक आन्दोलन खड़ा कर रातों-रातों अन्य चल रहे ज्वलंत मुद्दे (जिनसे सरकार की फजीहत हो रही थी) से सबका ध्यान भटका देना..... वाकई राजनीती में एक से बढ़कर एक शातिर खिलाड़ी है ! अन्ना हजारे का इस्तेमाल सेफ्टी बल्व की तरह हो चुका है, जो कुछ अब दिख रहा है उससे यह लगता है कि साजिश कामयाब हुई, इसकी गारंटी है कि आगे नौटंकी जारी रहेगी। 


भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के इस हाईटेक मुहीम के पीछे की सच्चाई धीरे धीरे जनता के सामने आने लगी है। इस मुहीम के अग्रणी तथाकथित समाजसेवी एक से बढकर एक निकले। बिकी हुयी मिडिया द्वारा प्रतीक बनें चेहरों के खिलाफ अमर सिंह ने मोर्चा संभाला है, जिनका खुद का राजनीतिक भविष्य अधर में है। राज्यसभा सदस्‍य और सपा के पूर्व नेता अमर सिंह ने कड़े शब्दों कहा, 'लोग मुझे दलाल कहते हैं। हां, मैंने मुलायम के लिए दलाली की है, लेकिन दलाली में शांति भूषण भी सप्लायर थे। अमर सिंह की ये बातें क्या साबित कर रहीं है। आप खुद ही समझ सकते हैं। 


भले ही यह दशा हीन भारत कि दिशा सूचक पहल है लेकिन इसेसे बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला है। अब इस बात से साफ़ साबित होने लगा है की सभ्य समाज की ओर से समिति के सदस्यों के नाम आन्दोलन शुरू होने से पहले ही तय हो गए थे और अन्ना हजारे, भूषण परिवार और नक्सलियों के दलाल अग्निवेश या किसी अन्य के द्वारा प्रायोजित इस आन्दोलन के चेहरे मात्न हैं। लेकिन दूसरी तरफ इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि लॊक पाल बिल सॆ सबसॆ ज्यादा डर किसॆ लग रहा हॆ जॊ कमॆटी बननॆ कॆ बाद सॆ नित नयॆ-नयॆ सगुफॆ छॊडॆ जा रहॆ है?

ये तथाकथित गांधीवाद के विषाणु से जनित कांग्रेस परदे के पीछे से गेम खेल रही है, कपिल सिब्बल (परोक्षत:) दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी प्रत्यक्षत: और द ग्रेट फिक्सर अमर सिंह का सीडी अभियान इसी रणनीति के तहत चलाया जा रहा है। पिछली बार जब दिग्विजय सिंह स्वामी रामदेव पर कीचड़ उछल रहे थे तब उन्होंने एक बात कही थी, "बाबा रामदेव नहीं जानते कि सरकार (कांग्रेस) होती क्या है ?" अब समझ आ रहा है कि कांग्रेस सरकार किस तरह की कीचड़ उछालने और भ्रम पैदा करने की राजनीति खेलती है।

अब जरा भ्रष्टाचार की लड़ाई में अन्ना का साथ देने की सोनिया गांधी और कांग्रेस की सहृदयता रूपी विवशता पर भी एक नजर डालिए। जिस प्रकार का अभूतपूर्व एवं देशव्यापी जनसमर्थन अन्ना हजारे के अनशन को मिल रहा था उसे देखते हुए इटलीपरस्त कांग्रेस के कर्णधारों के हाथ-पांव फूलने लगे थे। लोकपाल बिल से जनता का ध्यान बटाने के लिए जन कमेटी के सदस्यों की जन्म कुंडली खोज कर मीडिया में लाइ जा रही है, कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी अन्ना को लिखे अपने पत्राचार के शिष्टाचार में भष्टाचार मिटाने के प्रति अपनी निष्ठां दुहरा रही रहीं हैं दूसरी ओर उन्होंने चरित्र हनन अभियान के तहत अपने प्यादे दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल को कीचड़ उछालने का काम सौंप दिया है। अमर सिंह तो हैं ही कांग्रेस के पुराने सेवक, सो एक ठेका कांग्रेस ने उन्हें भी दे दिया है।

उससे बड़ी गलती तो अन्ना ने की पत्र लिखकर। चिट्ठी उसे लिखी जो खुद भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। भ्रष्टाचार के दलदल के कीड़ों-मकोड़ों से अन्ना ने भ्रष्टाचार में सहयोग की उम्मीद पाल ली, इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी। बेचारे सिविल सोसायटी के सदस्य, कहाँ चले थे भ्रष्टाचारी नेताओ और अधिकारियों के खिलाफ क़ानून बनाने....... कहाँ खुद ही सफाइ देते फिर रहे हैं... कुल मिलाकर नैतिकता के रथ पर सवार होकर हवा में उड़ रहे अन्ना हज़ारे इस लड़ाई को जीतकर भी हार गये लगते हैं... वहीं दूसरी तरफ सरकार हार कर भी जीत गयी है...। मस्तिष्क मंथन के बाद अमृत या विषरूपी जो विचार सतह पर आया उसका मतलब यह है कि सत्याग्रह करने वाले, आजादी के साठ साल बाद भी समझ नहीं पाए कि राजनीति में 'सत्यमेव जयते' सिर्फ एक नारा है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि जब गाँधी कुछ नहीं कर पाए तो उनके वादी क्या कर पाएंगे। यदि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहते हो तो ड्राफ्टिंग समिति से छद्म समाज सेवियों को हटाकर सुबह्मण्यम स्वामी, किरण बेदी, डॉ. अब्दुल कलाम व गोविंदाचार्य जैसे सच्चे समाज सेवियों को लो । ... ऐसा हो जाये तो कुछ बात बने....
अवनीश सिंह

Thursday, 14 April 2011

मत करो तारीफ मोदी की !


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ अच्छे-अच्छे धर्मनिरपेक्षों को शर्मनिपेक्ष बनने पर मजबूर कर देती है। चाहे वो कट्टरपंथियों के गले की फांस बने  दारुल उलूम (देश में शिया मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी संस्था) के नए कुलपति मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तनवी हों या भारतीय फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन। अब इस कड़ी में जो नया नाम जुड़ा है वो है नक्सलियों के दलालों से घिरे प्रख्यात समाजसेवी गांधीवादी अन्ना हजारे। 
अन्ना ने नरेंद्र मोदी की तारीफ क्या कर दी इटलीपरस्त वफादारों को मानो हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया हो। गाँधी के नाम पर रोटी तोड़ रहे कांग्रेसियों ने अपनी आका (मैडम सोनिया) को खुश करने के लिए मोर्चा संभाल लिया। अब ऐसे समय में भला दिग्गी राजा कैसे चुप रहते। दिग्गिलिक्स के खुलासों ने अन्ना हजारे जैसे लोकतंत्र के नए वाहक (मिडिया की नज़रों में आधुनिक गांधी) को भी भीगी बिल्ली बनने पर मजबूर कर दिया।
अंततः अन्ना को धर्मनिरपेक्ष का तमगा हासिल करने के लिए पत्रकार वार्ता कर कहने पर मजबूर होना पड़ा कि उन्होंने विकास की तारीफ की थी मोदी की नहीं, जब अन्ना हजारे जैसा मजबूत रीढ़ का आदमी कांग्रेसी हमले पर कोना पकड़ जाता है तो वाकई शर्म की बात है। लगता है अन्ना में भी तुष्टिकरण वाला गांधीवादी विषाणु प्रत्यारोपित कर दिया गया है। 
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात से पहले ही वाकिफ हो चुके हैं, उन्होंने उसी समय समाजसेवी अन्ना हजारे से कहा कि 'अन्ना आपने मेरे बारे में अच्छा क्यों बोला? आपको अब उन सामाजिक कार्यकर्ताओं का गुस्सा झेलना पड़ेगा जिन्हें गुजरात के नाम से ही चिढ़ है। ये लोग आपके खिलाफ दुष्प्रचार की मुहिम शुरू कर देंगे।' यह बात उन्होंने हजारे को लिखे अपने खुले खत में कही है। मोदी ने लिखा है, ' कल मैंने मुझे और मेरे राज्य को दिए आपके आशीर्वाद के बारे में सुना। मुझे डर है कि अब आपके खिलाफ निंदा अभियान शुरू हो जाएगा। गुजरात के नाम से ही चिढ़ जाने वाला एक खास ग्रुप आपके प्यार, बलिदान, तपस्या और सच के प्रति समर्पण पर कालिख पोतने का मौका नहीं छोड़ेगा। वे आपकी छवि खराब करने की पूरी कोशिश करेंगे, सिर्फ इसलिए कि आपने मेरे और मेरे राज्य के बारे में कुछ अच्छा कहा।'
लोकतंत्र में अपने विचार प्रकट करने की सुविधा हर इंसान को है। अगर अन्ना हज़ारे ने मोदी के काम की तारीफ की तो किसी भी वर्ग (खासकर राजनीति को घर की खेती समझने वाली कांग्रेस पार्टी) को गुस्सा आने की जरूरत क्या है। अन्ना हज़ारे ने नीतीश कुमार के काम की भी तारीफ की है, अगर उनकी तारीफ से लोगों को एतराज़ नही है तो मोदी की तारीफ से क्यूँ? आज देश का विकास चाहने वाला यही कहेगा आप विकास कीजिए सारा देश आपके साथ है। जिन्हें कुछ नहीं करना है उन्हें केवल बोलने दीजिए।
एक खास वर्ग है जिसे देशभक्ति में कट्टरवाद दिखता है, केसरिया रंग के कपड़े पहनने वाले भगवा आतंकी के रूप में नज़र आते हैं, अलगाववादिओं के साथ कश्मीर को पाकिस्तान को देने की वकालत करते है, पेज 3 की पार्टी और शराब मे डूबकर रोज घर जाना, उनकी आदत में शुमार है। ऐसे लोगों को नीतीश, मोदी जैसे नेता ओर उनका विकास नही चाहिए, उनको राजनैतिक चुहलबाजी के लिए लालू (नौटंकी बाज़), अमर सिंह (शायरीबाज़), मुलायम जैसे लोग, या फिर अपनी छवि निखारने के लिए इन मीडिया के दलालों को ऐश करवाने वाले नेता (युवा गांधी), अभिनेता और राजनेता चाहिए। राष्ट्रवाद और विकास की बात करने वालों के खिलाफ तथाकथित सेकुलर लोग ज़रूर बोलते हैं, लेकिन जब देशद्रोही लोग सरे आम अलगाववाद, और पाकिस्तान के गीत गाते है तब ये अपने बिलों में घुसे रहते हैं और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीतिक बिसात बिछाने में लग जाते है।
अवनीश सिंह
14.04.11 

Saturday, 9 April 2011

जंतर मंतर का शुक्रवार का दृश्य


नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रख्यात समाजसेवी किशन बापट बाबूराव हजारे उपाख्य अन्ना
 हजारे की भ्रष्टाचार के खिलाफ भूख हड़ताल का शुक्रवार को चौथा दिन था। इस दौरान
 "वी.एच.वॉयस" न्यूज वेब-पोर्टल की टीम ने कुछ प्रमुख चित्रों को अपने कैमरे में कैद किया है।

                                               प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ दिखा आक्रोश 
                                       (भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशनरत पति-पत्नी)
                                                      पेंटिंग के माध्यम से अभिब्यक्ति 
                                                        युवा भी दिखे आक्रोशित 
                                       बच्चे भी अन्ना के समर्थन में पीछे नहीं रहे 
(सभी चित्र : अवनीश सिंह, वी.एच. वॉयस)

Thursday, 7 April 2011

अन्ना, कांग्रेस से चौकन्ना


पहले तो विकिलीक्स ने भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचाया, फिर बारी आई योग गुरु रामदेव की लेकिन अब अन्ना हजारे ने मोर्चा खोला है। एक के बाद एक लगातार हमले झेल रही कांग्रेस (वस्तुतः सोनिया और राहुल) नेतृत्व यूपीए सरकार बेचैन हो गयी है। सोनिया के इशारे पर बाबा रामदेव के खिलाफ दिग्गिलिक्स (दिग्विजय) ने जमकर भौंका, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अब तक हजारे के खिलाफ भौंकने के लिए इटली की रानी के खेमे में कोई वफादार सैनिक (कुत्ता) नहीं आगे आ रहा है।
पिछले कुछ महीनों में एक के बाद एक नए घोटालों के सामने आने से परेशान प्रधानमंत्री और संप्रग सरकार के साथ आम आदमी ने भी भारत को क्रिकेट विश्वकप जीतता देख राहत की सांस ली ही थी, कि वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलकर जीत के जश्न में खोए भारतीय जनमानस को मानो झकझोर सा दिया है। हालांकि यह भी सच है कि बड़ी खामोशी से शुरू हुई इस मुहिम ने अगर तूल पकड़ा, तो सरकार के लिए कई मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं।
लेकिन अब अन्ना को भारतीय राजनीति की धरोहर कांग्रेस और उनके चमचों से चौकन्ना रहना पड़ेगा। क्या पता कब कौन सा सांसद भरी सभा में गली दे। (जैसा की बाबा रामदेव के साथ हुआ) ... फिर दिग्गी, मनीष तिवारी जैसा कोई वफादार भारतीय मीडिया की असली औकात तौलते हुए अन्ना पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगवा दे।
उपभोक्तावाद ,बाजारवाद की शक्तियो ने आदमी को इतना अधिक आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना दिया है कि वह सिर्फ अपने परिवार का हित देख रहा है परन्तु कोई भी थोड़ा सा जागरूक होकर और निष्पक्षरूप से सोचता है तो वह निश्चित रूप से यह समझ जायेगा कि यह अब अधिक समय तक चलने वाला नही है। देश का युवा भारतीय दल के विश्व क्रिकेट अभियान की महाविजय को देशभक्ति से जोडकर आनन्दित होता है और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जुट करने वाले राम देव बाबा व अन्ना हजारे का समर्थन नहीं कर सकता। अगर यही है देशभक्ति तो ऐसी देशभक्ति पर धिक्कार है...
शक्तिआकांक्षा, वंशवाद, पैसा, पद, प्रतिप्ठा की हवस, घनघोर बेशर्म भ्रष्टाचार से आज सारे राजनैतिक दल कांग्रेसमय हो गये है बल्कि उससे भी आगे निकल गए है। यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है कि सिर्फ अपने लिए जीने वालों ने ही देश के गौरवशाली अतीत को रौंदा है। भारत की राजनीति में आज भ्रष्टाचार जितना बड़ा मुद्दा बन गया है, पहले कभी नहीं बना लेकिन अचंभा है कि किसी के पास उसका कोई ठोस इलाज़ दिखाई नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री माफी मांग लेते हैं और विपक्षी नेता उन्हें तुरंत माफ कर देती हैं।
भारत के इस विश्व विजय की खुशी मनाओ, लेकिन सिर्फ क्रिकेट की जीत पर नहीं, काला धन के रुप में जमा विदेश मे धन वापस अपने देश मे आने पर, भ्रष्टाचार को मिटने पर। नहीं तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। जरा गणित तो लगाओ, लगभग 300 लाख करोड़ रुपये भारत आ जाए तो देश के गांव की तश्वीर क्या होगी? क्या तुम नहीं चाहते देश की तरक्की ? आजादी की लड़ाई के बाद अब वक्त आया है फिर कुर्बानी का।

Monday, 4 April 2011

विक्रम संवत् 2068 भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ


सोमवार, 4 अप्रैल, सन् 2011 को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से रेवती नक्षत्र में विक्रम संवत् 2068 भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ हो रहा है। साथ ही वासंतिक नवरात्र का पावन पर्व भी आज ही प्रारंभ हो रहा है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है।

भारतीय कालगणना के अनुसार वसंत ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्यतिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत् को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत राष्ट्र इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है।

भारतवर्ष में इस समय देशी तथा विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है किंतु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत् यदि कोई है तो वह विक्रम संवत् ही है। आज से लगभग 2,068 वर्ष पूर्व यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम संवत् का भी आरम्भ हुआ था।

पुराणों के अनुसार इसी तिथि से ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। पंचांगों के अनुसार इस नए संवत्सर का नाम 'क्रोधी" संवत्सर है जिसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार और महंगाई के विरुद्ध जन-आक्रोश भड़कने की सम्भावनाएं अधिक हैं। संवत्सर का राजा चंद्रमा होने के कारण जनता में आपसी सौहार्द तथा प्रेमभावना की अभिवृद्धि का योग है तो मंत्री गुरु होने के कारण धन-धान्य तथा अच्छी फसल होने के भी संकेत हैं।