आज आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के आरोप में सर्वाधिक यूपी के लोग ही जेलों में निरुद्ध हैं। बुरका पहनने से लेकर आधुनिक शिक्षा टेलीविजन तक देखने के खिलाफ भी फतवा यदि कहीं जारी होता है, तो वह उत्तर प्रदेश है। ऐसा नहीं है कि कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती, लेकिन वह आवाज नककारखने में तूती के समान होती है। ऐसी अभिव्यक्ति करने वालों को चौतरफा घेर लिया जाता है। जिस प्रकार वास्तनवी को घेर लिया गया।
मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी अपना पदभार संभालने के साथ ही चर्चा में आ गए हैं। चर्चा में आने की अनेक वजह हैं। वस्तानवी दारुल उलूम के पहले मुखिया हैं, जो एमबीए किए हुए हैं। उन्होंने अपने स्थापित किए मदरसों में आधुनिक विज्ञान, इंजीनियरी और चिकित्सा जैसे विषय शामिल किए हैं। देवबंद के इतिहास में वे पहले गुजराती कुलपति हैं और गुजरात में मुस्लिमों की स्थिति पर उनकी टिप्पणी भी विवाद का विषय बनी है।
सुन्नी मुसलमानों के दो ‘मठ’ है। एक देवबंदी कहलाता है और दूसरा बरेलवी। देवबंदियों का विस्तार इस देश से बाहर भी है। पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में सक्रिय अनेक उग्रवादी संगठनों के कर्ताधर्ता देवबंदी मठ के अनुयायी है। तालिबानियों की शुरुआत भी इसी इलाके से हुई जो इस समय विश्व शांति के लिए सबसे ब़डा खतरा बना हुआ है। देवबंद पर सौ वर्ष से भी अधिक समय से मदनी परिवार का कब्जा है। असद मदनी कई बार कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं। मुसलमानों के सामाजिक अथवा पंथिक सरोकार के बारे में सबसे ज्यादा फतवा देवबंद से ही जारी होता है।
आप को याद होगा इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था दारुल उलूम देवबंद इस साल जीवन से जुड़े अलग-अलग फतवों को लेकर खासी चर्चा में रही। देवबंद ने जहां रक्तदान को हराम करार दे दिया, वहीं महिलाओं और पुरुषों के एक साथ काम करने को भी अवैध बताया। देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है। इस्लाम में फतवे की बहुत मान्यता है। फतवा मुफ्ती से तब मांगा जाता है, जब कोई ऐसा मसला आ जाए जिसका हल कुरआन और हदीस की रोशनी में किया जाना हो। लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसा हुआ है कि फतवों की बाढ़ आ गयी है।
इस फतवों की इतनी अति हो गई कि स्वयं देवबंद के आलिमों को उसका संज्ञान लेना प़डा। यह ठीक है कि दारुल उलूम में केवल मजहबी शिक्षा ही दी जाती, लेकिन वहां की मानसिकता पर कट्टरपंथ का पूर्ण अधिपत्य है। शायद यही कारण है कि वास्तनवी के किसी कथन को ‘अपराध’ मानकर उनको हटाने की मुहिम इतना वीभत्स रूप धारण कर गया कि उन्होंने त्यागपत्र दे दिया, लेकिन कुछ उदारवादियों ने उन्हें पद छ़ोडने से रोक लिया , जिसके विरोध में छात्रों का आंदोलन तेज हो गया। इसमें वहां के आलिम भी शामिल है।
उत्तर भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए मजहबी शिक्षा की प्राथमिकता के अलावा दो और शिक्षा केन्द्र है। एक दिल्ली की जामिया मिलिया और दूसरा अलीग़ढ का विश्वविद्यालय। देवबंद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब कुलपति को हटने के लिए विवश किया । जामिया मिलिया और अलीग़ढ में तो बहुत बार ऐसा हो चुका है। जिस कुलपति ने कट्टरवादियों की इस्लामी अवधारणा से हटकर विचार व्यक्त किया या उदारवादी प्रयास किए उसे पद छ़ोडना प़डा। ऐसा क्यों होता है। शयाद वास्तनवी के एक अन्य साक्षात्कार में कही गई बात इसका मुख्य कारण हो। अपने खिलाफ अभियान की तीव्रता पर त्याग पत्र देने की घोषणा करते हुए कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के उलेमाओं पर राजनीतिक प्रभाव बहुत ज्यादा है।
इसलिए जब वास्तनवी ने यह कहा कि उत्तर प्रदेश के उलेमा राजनीतिक प्रभाव में अधिक हैं, तब मुझे न केवल इन दो घटनाओं का स्मरण हो आया अपितु उनके विरोध से यह भी समझ में आया कि किन प्राथमिकताओं में उलझने के कारण उत्तर प्रदेश का मुसलमान सिर्फ वोट बैंक भर बनकर रह गया है।
यदि उसे यह बताया जाये कि गुजरात का पुलिस महानिदेशक एक मुसलमान है, तो वह मानने के लिए शायद ही तैयार हो, क्योंकि उसके भीतर यह अवधारणा पैठ गई है कि मोदी ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जिससे मुसलमान एक सामान्य नागरिक के समान जी सके।किंतु अफसोस इस बात का है कि गणतंत्र को चलाने और राजधर्म को निभाने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वे वोट बैंक से आगे की सोच नहीं पाते। वे देशद्रोह को भी जायज मानते हैं और उनके लिए अभिव्यक्ति के नाम पर कोई भी कुछ भी कहने और बकने को हर देशद्रोही आजाद है।
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