Tuesday 19 July 2011

इस दहशत के पीछे आखिर मकसद क्या है ?

दिनांक – 13 जुलाई 2011

हर रोज की तरह देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई आज भी अपनी रफ़्तार से दौड़ रही थी; तभी अचानक तेज धमाकों की आवाज होती है और उसके बाद चारों तरफ चीख पुकार। 10 मिनट के अंतर पर झवेरी बाज़ार, दादर और ओपेरा हाउस में सिलसिलेवार तीन विस्फोट में कम से कम 23 लोगों की मौत और करीब 136 से ज्यादा लोग घायल। इस तरह से एक और आतंकी घटना को अंजाम दे दिया जाता है

धमाकों के बाद लोग सदमे में नजर आए, पर दुर्भाग्य की बात यह रही कि हर बार की तरह इस बार भी धमाकों का धुआँ छँटते ही केन्द्र सरकार और विपक्षी नेताओं ने एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर दिए। एक के बाद एक लगातार आतंकी हमलों को सहने वाली मुंबई आतंकियों का आसान निशाना बन चुकी है, लेकिन हैरान करने वाला तथ्य यह है कि आतंकी हमलों में हताहतों की संख्या के आधार पर यह शहर आतंक के केंद्र माने जाने वाले कराची और काबुल के साथ खड़ा है। धमाके की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से किसी आतंकी संगठन ने अभी तक नहीं ली है लेकिन शक की सुई इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) और सिमी की तरफ साफ़ तौर पर इंगित करती है। आखिर इस धमाके के पीछे क्या है इनका मकसद..।

आतंकवादी संगठनों का बैक्टेरिया जिस दर से दुनिया में बढ़ रहा हैं उससे लगता है कि यह आने वाले सालों में लाइलाज बीमारी बन जाएगा। सिर्फ भारत की बात की जाए तो यहां विभिन्न राज्यों में 175 से अधिक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। प्रमुख राजनीतिक व व्यवसायिक शहर इनके निशाने पर हैं। पाकिस्तान, तालिबान, ईराक तथा अन्य पड़ोसी देशों में बच्चों को आतंकवाद की पढ़ाई में अव्वल बनाया जा रहा हैं। इनके हाथों में किताबों की जगह हथियार होते हैं। राजनैतिक समर्थन से पोषित हो रहे यह संगठन इतने हाइटेक हैं कि लैपटॉप से लेकर रॉबोट रचने तक की कला इन्हें आती हैं।

इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) यानि वो गुट जिसे केंद्र सरकार पिछले साल जून में आतंकी संगठन घोषित कर चुकी है। अलग-अलग धमाकों में 500 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले इस आतंकी संगठन के तार पाकिस्तान से भी जुड़े हैं। जेहाद के नाम पर बेगुनाहों का खून बहाने वाले इस आतंकी संगठन का नाम सबसे पहले 23 फरवरी 2005 को उस वक्त चर्चा में आया जब उसने वाराणसी में ब्लास्ट किया था। 

सही यह होता की बयानबाजी के बजाय इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई रूपरेखा बनाई जाती। इस पर गंभीरता से चिंतन की जरूरत है, क्योंकि इन घटनाओं के होने के पीछे जो कारण हैं, वह इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आतंकियों ने इस देश में किस हद तक जड़ें जमा ली हैं।

इसके साथ ही केन्द्र और राज्य सरकारों को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के बारे में सोचना होगा। शीर्ष नेतृत्व को कुछ कठोर कदम उठाना ही होंगे, भले ही इसके लिए उन्हें अपने राजनैतिक हित भी खतरे में क्यों न डालना पड़ें, क्योंकि नेता हो या आम आदमी सबका वजूद इस देश से है, इसकी सुरक्षा सर्वोपरि है। 


दिल्ली, मुंबई या कोलकाता के वातानुकूलित क्लब और होटलों में गोष्ठी करने वाले कुछ भ्रष्ट बुद्धिवादियों के मन भले ही अपने इन साथियों के लिए धड़कते हों पर आम नागरिक के मन में इनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है। उसकी दृष्टि में ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। गड़बड़ी कहाँ है और इसका मूलकहाँ है, यह सभी जानते हैं, लेकिन स्वीकार करने से कतराते, मुँह छिपाते हैं। लेकिन दाद देनी होगी भारत देश की जहां देशभक्तों का अपमान और आतंकियों का सम्मान होता है
अवनीश सिंह 

3 comments:

  1. अवनीश भाई, सत्य वचन...
    राजनैतिक बयान बाज़ी का रो क्या कहना...शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो समस्या से उबारने के लिए सोचना छोड़कर तुष्टिकरण अपनाने में लगे हैं...
    बेहतर प्रस्तुति...

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  2. avnish ji yehi hamare desh ke vidambana ya durbhagye hai ke hum log baate to bahut karte hai, lakin jab koi musibat aati hai to hum ek dusre ka muh takte hai.

    isme kewal netao ke galti hai isa nahi hai is ke liye hum khud jimedar hai, kiyoki koi bhi humare ghar ke bhed tabhi jaan sakta hai jab humare hi ghar me jeychand ho.

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  3. दिनेश जी प्रतिक्रिया और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद....रही बात तुष्टिकरण की तो एक ही बात मै कहूँगा यह बीमारी देश को विनाश की तरफ ही ले जाएगी विकास की तरफ नहीं ...

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