Friday, 10 February 2012

भ्रष्टाचार का शिष्टाचार

नई दिल्ली, 02 फरवरी । सर्वोच्च न्यायालय ने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े मुद्दे पर फैसला सुनाने के साथ ही गुरुवार को सरकार की साख पर करारा तमाचा जड़ दिया। पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दबाए रखने के मामले में किरकिरी झेल चुकी सरकार को शीर्ष अदालत ने बड़ा झटका देते हुए राजा के कार्यकाल में दिए गए स्पेक्ट्रम के 122 लाइसेंसों को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया। सरकार की आवंटन नीति को बेजा ठहराते हुए अदालत ने स्पेक्ट्रम की हिस्सेदारी बेच कर मोटा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों एतिसलातयूनिटेक व टाटा टेली पर पांच-पांच करोड़ तथा लूप टेलीकामएसटेलएलायंज इन्फ्राटेक तथा सिस्तेमा श्याम पर 50-50 लाख का जुर्माना भी ठोंका।
जस्टिस एके गांगुली के लिए गुरुवार का दिन भले ही कोर्ट में आखिरी दिन रहा मगर उनका यह फैसला ऐतिहासिक बन गया है। इससे न सिर्फ कॉरपोरेट कानून प्रभावित होगाबल्कि लंबे समय में इसका असर सरकार की नीति और कॉरपोरेट के कामकाज पर भी होगा। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला केंद्रीय सत्ता के लिए एक और शर्मिदगी का क्षण है।
यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि उसके सामने ऐसे क्षण बार-बार आ रहे हैं। अभी दो दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को कठघरे में खड़ा किया था। खास बात यह है कि उस फैसले के केंद्र में भी पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा ही थे और ताजा फैसले में भी। 2जी स्पेक्ट्रम के सभी 122 लाइसेंस अवैध करार देकर उन्हें रद करने के शीर्ष अदालत के फैसले ने यह साबित कर दिया कि जब घोटालेबाज ए.राजा कुछ कारपोरेट घरानों से मिलकर मनमानी करने में लगे हुए थे तब केंद्रीय सत्ता सोई हुई थी। इससे साफ है कि स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही है और इसमें घोटाला हुआ है।


इस घोटाले के लिए संप्रग सरकार की सामूहिक विफलता को इंगित करना सर्वोच्च न्यायालय नहीं भूला। इसका आशय है कि घोटाले के लिए पूरी सरकार जिम्मेदार है और वह अपने आपको इससे अलग नहीं कर सकती। दुखक्षोभ और लज्जा की बात यह रही कि जब उसे झकझोर कर इस महाघोटाले से अवगत कराया गया तो उसने शुतुरमुर्गी आचरण का परिचय दिया। इतना ही नहीं उसकी ओर से हरसंभव तरीके से राजा का बचाव करने की भी कोशिश की गई।
यह सर्वविदित है कि सरकारी ठेके और लाइसेंस देने में भ्रष्ट तरीके अपनाए जाते हैंकानून तोड़े जाते हैंपक्षपात होता है और आमतौर पर जो कंपनी ज्यादा देती हैउसे ज्यादा मिलता है। गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने 122 टेलीकॉम लाइसेंस इसलिए रद्द कर दिएक्योंकि इन्हें जारी करते समय नीतियों का ठीक पालन नहीं हुआ और भ्रष्ट मंत्री ने रिश्वत लेकर लाइसेंस बांटे। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय ने किसी नीति और उसकी खामियों पर सीधी टिप्पणी की है। कोर्ट ने 'पहले आओ-पहले पाओ'नीति को गलत और घातक करार दिया है। रद्द होने वाले लाइसेंस को लेकर बहुत लोगों को चिंता हैऔर इसके दूरगामी प्रभाव भी होंगे।
अगर लाइसेंस आवंटन में नीति का सही तरीके से पालन नहीं होता है तो भविष्य में यह फैसला लाइसेंस रद्द करने का आधार बन सकता है। आने वाले वर्षों में अनेक मामलों में इस फैसले को नजीर बनाकर उपयोग किया जाएगा। कानून की थोड़ी जानकारी रखने वाला भी यह समझ सकता है कि भविष्य में बड़े कॉन्ट्रैक्ट रद्द हो सकते हैं। खासकर अगर नीति का सही-सही पालन नहीं हुआ हो तो। फ्रॉड के आधार पर लाइसेंस रद्द करने के कई फैसले हुए हैं।
यह स्वान टेलीकॉम जैसी कंपनियों को सिर्फ लाइसेंस खरीद और बेचकर मुनाफा कमाने से रोकेगा। इस कंपनी ने 1,537 करोड़ रुपये में लाइसेंस खरीदा और एतिसालात को 4,500 करोड़ में हिस्सेदारी बेच दी। यह फैसला राजनीतिज्ञों को भी नीतियों के गलत इस्तेमाल या उनकी गलत व्याख्या करने से रोकेगा। नीति पर अमल होइस पर अब नेताओं से ज्यादा कॉरपोरेट्स को चिंता होगी। दूरसंचार मंत्री के पद पर रहते हुए ए. राजा ने कंपनियों को आशय पत्र जमा करने के लिए सिर्फ 45 मिनट का समय दिया। यही नहीं, 1600 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी के लिए भी उन्हें कुछ घंटे का ही वक्त मिला।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण समय वह था जब खुद प्रधानमंत्री ने राजा को क्लीनचिट देते हुए किसी तरह के घोटाले से इंकार किया। इसके बाद जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने घोटाले पर मुहर लगा दी तो सच को स्वीकार करने के बजाय इस संवैधानिक संस्था की ही खिल्ली उड़ाने का काम किया गया। यह काम सरकार ने भी किया और उसका नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने भी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद बुरी तरह शर्मसार सरकार के पास अपनी सफाई में कहने के लिए कुछ भी नहीं हैलेकिन वह अभी भी खुद के सही होने और अपनी सेहत पर फर्क न पड़ने का दंभ भर रही है। इससे तो यही लगता है कि उसने यह ठान लिया है कि कुछ भी हो जाए वह सच का सामना करने के लिए तैयार नहीं होगी। यह और कुछ नहीं बल्कि बची-खुची साख गंवाने का सुनिश्चित रास्ता है।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद सारी गलती राजा पर थोपने के साथ ही स्पेक्ट्रम आवंटन की गलत नीति बनाने के लिए जिस तरह भाजपा से माफी मांगने के लिए कहा गया वह हास्यास्पद भी है और केंद्रीय सत्ता के अहंकारी रवैये का नमूना। केंद्र सरकार जानबूझकर इस तथ्य की अनदेखी कर रही है कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में राजग सरकार की पहले आओ पहले पाओ नीति को त्रुटिपूर्ण करार देने के बावजूद संप्रग सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि 2008 के पहले के लाइसेंस भी खारिज किए जाने चाहिए।
यह समझना कठिन है कि केंद्र सरकार ने बदली हुई परिस्थितियों में स्पेक्ट्रम आवंटन की नीति को दुरुस्त करने की जरूरत क्यों नहीं समझी और वह भी तब जब इसकी मांग भी की जा रही थीक्या राजग शासन द्वारा तय की गई नीति कोई पत्थर की लकीर थीमौजूदा दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल की मानें तो सारी गड़बड़ी राजा ने की। उन्होंने ही रातोंरात नियम बदले और जब वह ऐसा कर रहे थे तो न तो वित्तमंत्री का उन पर कोई जोर चल रहा था और न ही प्रधानमंत्री का। क्या यह कहने की कोशिश की जा रही है कि दूरसंचार मंत्री के रूप में राजा प्रधानमंत्री और कैबिनेट से भी अधिक शक्तिशाली थेनि:संदेह ये कुतर्क सच्चाई स्वीकार करने से बचने के लिए दिए जा रहे हैं।

जहां तक प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग का संबंध है तो यह प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का अधिकार होता है कि वह सरकार के कामकाज की समीक्षा करे और उसके गलत कामों की निंदा करे और हरसंभव तरीके से सरकार पर दबाव बनाए,लेकिन यहां सवाल पूरे देश की जनता और संसद के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के प्रति सरकार की जिम्मेदारी का भी हैजिसे हर हाल में पूरा किया जाना होगा और उस पर खरा उतरना होगा। कम से कम 2जी मामले में सरकार इन पैमानों पर खरी नहीं उतरी है। इससे न केवल सरकार की किरकिरी हो रही हैबल्कि उसके साथ-साथ पूरे देश की छवि भी अंतरराष्ट्रीय जगत में दांव पर लग रही है।
यह एक चिंता की बात है कि देश की सरकार ही देश के लिए समस्या बन रही है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक नजीर के रूप में लिया जाना चाहिए और आगे के लिए सबक लेते हुए एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आम जनता के लिए बहुत ही राहत लेकर आया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए यह मील का पत्थर साबित होगा। आखिर केंद्र सरकार और उसके रणनीतिकारों को अपनी भूल स्वीकार करने में संकोच क्यों हो रहा है?