Friday, 17 June 2011

'सेकुलर संजीवनी' की एक खुराक


कांग्रेसियों ने खोजा सेकुलर बनाने का नया तरीका

जिस तरह हाजी की उपाधि पाने के लिए हज यात्रा करना जरुरी है उसी तरह खुद को सेकुलर साबित करने के लिए आज़मगढ़ जिले के संजरपुर की यात्रा भी आवश्यक मानी जाती रही है। लेकिन हाल-फिलहाल में कांग्रेसियों ने इन तर्कों को झुठलाते हुए सेकुलर बनने के लिए एक नया तरीका खोज निकला है।

अगर किसी बुद्धजीवी नेता को सेकुलर बनना है तो उसे दस जनपथ जाकर मुफ्त में बट रहे दिग्ग्विजय सिंह और मनीष तिवारी के फार्मेसी से निकली 'सेकुलर संजीवनी' की एक खुराक लेनी है। शर्तिया सेकुलर बनाने का दावा करने वाले इस संजीवनी' की एक खुराक लेते ही आप के हाव-भाव, भाषा-बोली सब बदल जाएगी। संघ को गरियाना हो या भाजपा को लतियाना हो.... दोनों काम इस संजीवनी' को लेते ही आप अपने आप करने लगेंगे।

कुछ सेकुलरों ने तो इसके कुछ अन्य लाभ भी बताया है। नाम न छापने की बात कहते हुए मेरे एक कांग्रेसी मित्र ने बताया कि इस खुराक के लेते ही उनके अन्दर कुछ कुत्तों वाले लक्षण भी देखने को मिले। उन्होंने बताया कि जबसे उन्होंने दस जनपथ जाकर इस खुराक को लिया है तब से वो सोनिया भक्त हो गएँ है और उनकी स्वामिभक्ति इटली के प्रति अचानक बढ़ गयी है। सदैव खामोश रहने वाले मेरे कांग्रेसी मित्र अब तो लगातार किसी पर भी घंटों भौंक लेते है।

यह तो साबित हो चूका है कि अब हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की प्रखर अभिव्यक्ति को कुचलकर ही सेकुलर की पगडंडी तैयार की जा सकती है। अगर फिर भी यकीं न आये तो एक बार दिल्ली के 10 जनपथ से होकर आइये। यकीन नहीं आये तो दो दिन पूर्व ही दस जनपथ से खुराक लेकर लौटे कांग्रेस महासचिव और पार्टी के छत्तीसगढ़ मामलों के प्रभारी बी. के हरिप्रसाद से पूछ सकते हैं।

सेकुलर की खुराक लेकर लौटे हरिप्रसाद पर दस जनपद की महारानी मायनो के जादू से युक्त संजीवनी ने इस कदर असर दिखाया कि भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर जारी बहस के बीच जुबानी जंग में दिग्गी राजा से भी एक कदम आगे निकले। नितिन गडकरी द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम और धर्म निरपेक्षता के मामले में ओसामा बिन लादेन की औलाद बताने से भड़की कांग्रेस ने अब भाजपा पर पलटवार के लिए ऐसे सूरमाओं को इस संजीवनी को पिलाकर मैदान में उतार दिया है।

गडकरी के बयान का उत्तर देने के लिए मैदान में उतरे इस सेकुलर कांग्रेसी हरिप्रसाद का नाम देश ने पिछली दफ़ा कब सुना था? सोचने पर भी याद नहीं आएगा...ये है इस सेकुलर संजीवनी का कमाल। जब कभी बिना दिमाग़ लगाए राग दरबारी अलापने का अवसर आता है तो ये बेअक्ल लोग अपनी तान छेड़ देते हैं। अपने इमोशन के लूशमोशन को सम्हालते हुए हरिप्रसाद ने गडकरी को जोकर और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज देशभक्ति गीतों पर झूमने को बेशर्म बता डाला। इतना ही नहीं हरिप्रसाद ने लालकृष्ण आडवाणी को भी जिन्ना भक्त बताते हुए आड़े हाथों लिया।

गाँधी समाधि को श्मशान कह कर पूरे देश को बता दिया की कांग्रेस गाँधीजी का कितना और कैसा सम्मान करती है। गडकरी के बयान को गटर की राजनीति कहने वाले कुछ कहेंगे कांग्रेस के इस महासचिव के बयान पर। समाधि और शमशान मे बहुत फ़र्क है... ये इनको पता होना चाहिए।  

Sunday, 5 June 2011

उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक लड़ते रहो...


बाबा रामदेव के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान में जारी मुहिम के एक दिन पहले फाइव स्टार व्यवस्था को लेकर मीडिया में काफी चर्चा रही, लेकिन गर्मी से बेहाल भूखे पेट पसीना पोछते रिपोर्टरों को देखकर सारे चैनलों से फाइव स्टार का सगूफा गायब हो गया। वहीँ दूसरी तरफ अन्ना हजारे के आन्दोलन से रामदेव की मुहिम की तुलना करने वाले तथाकथित बुद्धजीवियों के चेहरे पर उस समय हवाईयां उड़ने लगी जब अनशन स्थल पर एक दिन पहले ही पचास हज़ार से अधिक लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।

इस अनशन की सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह रही कि रामदेव की आगवानी करने कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के चार-चार वरिष्ठ मंत्री हवाई अड्डे पर पहुँच गए। इससे कांग्रेस का कमीनापन उसी समय समझ में आ गया। साथ ही कांग्रेस के बड़बोले मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह जैसे सोनियां के चमचों को अपनी ही पार्टी के कुकृत्यों से शर्मिंदा होने का अवसर पहली बार देखने मिला। ऐसे में दिग्गी राजा को हिस्टीरिया का दौरा आना लाजमी था, सो उन्होंने रामदेव के बारे में कसीदे कसना शुरू कर दिया। 
 
इस दौरान अनशन की हवा निकालने में जुटी शर्मनिरपेक्ष ताकतों और बिके हुए मीडिया घरानों का पहला निशाना बनी बाबा रामदेव के मुहिम का समर्थन करने मंच पर पहुंची ऋतम्भरा... जिनके ऊपर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाकर न्यूज़ रूम में बुद्धजीवियों और समाज सेवियों का एक पैनल चर्चा करने में जुट गया। सेकुलरिज्म का चश्मा पहने इन महान विभूतियों की पारदर्शी नज़र में अन्ना हजारे के मंच पर नक्सलियों का दलाल अग्निवेश समाज सेवी दिखता है और वात्सल्य ग्राम वाटिका में अनाथ बेसहारा बच्चों को सहारा देने वाली साध्वी साम्प्रदायिक

अन्ना और रामदेव की मुहिम के दौरान एक अंतर और देखने को मिला। अन्ना के मुहिम को फ़िल्मी जगत के बड़े-बड़े निर्माता निर्देशकों और अभिनेताओं से लेकर एलीट वर्ग तक का समर्थन मिला....जबकि रामदेव को देश के किसान, मजदूर और माध्यम वर्गीय लोंगों का साथ और आत्मविश्वाश मिला। लेकिन इतना जरुर है कि बाबा की आलोचना शाहरुख़ खान और सलमान खान जैसे देश भक्त कलाकारों ने की। एक तरफ अन्ना हजारे के मंच पर चौबीसों घंटे प्रख्यात वकील (दलाल) शांति भूषण, एनजीओ किंग अरविन्द केजरीवाल और किरण वेदी समेत सिविल सोसाईटी के नुमायिंदे नज़र आ रहे थे तो राम देव के मंच पर संत और विभिन्न धर्म के गुरु नज़र आ रहे थे

अब बात करतें है असली ड्रामे की.... शांति पूर्वक चल रहे अनशन में उस वक्त अशांति फैली जब केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री कपिल सिब्बल ने प्रेस कांफ्रेंस कर पत्रकारों को रामदेव के साथ हुए तथाकथित समझौते की चिठ्ठी पढकर सुनाई। रामदेव से सरकार के साथ हुए समझौते की बात देर रात तक मीडिया में सुर्खिया बनी रही। सरकार की सफलता और अनशन की विफलता की बात सोचकर कई कांग्रेस भक्तों के चेहरे की लालिमा अचानक ही बढ़ गयी। उनके चेहरे की दिगविजयी मुस्कान छुपाये नहीं छुप रही थी। लेकिन इस वक्त एक प्रश्न जो सबकी जेहन में था वो था सरकार की चतुराई भरी रणनीति

अचानक आधी रात को रामलीला मैदान में रामण लीला का दृश्य कहा से उभर कर आने लगा। अपने काले कारनामों और नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए सरकार के इशारे पर करीब पांच हज़ार से भी अधिक पुलिस के जवानों ने रात के दो बजे रामदेव सहित सभी सत्याग्रहियों को घेरकर बर्बरता पूर्वक पीटना शुरू कर दिया। इसके बावजूद भी जब अनशनकारी नहीं हटे तो पंडाल में आग लगाकर आंशू गैस छोड़े गए। अपनी बर्बरता का नमूना पेश करते हुए पुलिस वाले बाबा रामदेव को बेरहमी से खीचते हुए उठा ले गए। रामलीला मैदान में दो दिनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम में उमड़े जनसैलाब की भावनावों के साथ जिस तरह पुलिस वालों ने बलात्कार किया उसका उदहारण भारतीय लोकतंत्र को शर्मशार करने के लिए नाकाफी है

देश में इतनी बड़ी घटना हो गयी...इस दौरान जिस कांग्रेस त्रिगुट (सोनिया, राहुल और मगनमोहन) के इशारों पर यह सत्ता के लोभ में गन्दा खेल खेला जा रहा है उनकी तरफ से अभी भी कोई बयान नहीं आया। इससे यही लगता है कि इस देश में रामदेव जैसे लोगों की जगह नही है यहाँ अलगाववादियों और नक्सलवादियों द्वारा किए गये विरोध को ही तबज्जो दी जाती है। क्या आने वाले समय मे लोग आतंकवादियों, नक्सलवादियों का समर्थन कर अपनी माँग मनवाने के बारे मे सोचेंगे? जिस तरह से रामदेव को प्रताड़ित करने साजिश की गई है उससे तो यही लगता है। लोकतंत्र का तो गला घोटा गया है और केंद्र सरकार को कोई अफ़सोस नही है, उल्टा रामदेव को ठग कह रही है।

आखिर भ्रष्टाचार और काले धन के मामले पर सत्ता में बैठे राजा-रानी और युवराज़ जनता की भावनाओं को कब तक कुचलेंगे। कब तक हम अन्ना और रामदेव रूपी बैसाखी के सहारे इनसे लड़ते रहोगे। उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक लड़ते रहो....

अवनीश सिंह